यदि रक्त बूंद भर भी होगा कहीं बदन में। नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में। यदि एक भी रहेगी बाकी तरंग मन में। हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे। वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे॥ मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है। सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है। तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है। हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।आगे बढ़े चलेंगे कविता का भावार्थ बताएं
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