यदि समाचार पत्र न होते निबंध
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उत्तर:
अगर अखबार नहीं होते
कई आशीषें हैं जो विज्ञान ने मानव जाति को दी हैं। अखबार उनमें से एक है। एक बस यह सोचकर हैरान रह जाता है कि एक वंडरलैंड इस छोटी सी चीज को अपने आप में क्या छिपाता है। जैसे ही यह आपके सामने आता है, यह आपके सामने पूरे ब्रह्मांड को प्रकट करता है।
यह सोचना थोड़ा मुश्किल है कि अगर अखबार नहीं होते तो कैसा लगता। एक शिक्षित और सभ्य व्यक्ति स्वेच्छा से एक या दो दिन के लिए अपने भोजन को त्यागने के लिए सहमत हो सकता है, लेकिन, उसके लिए एक दिन के लिए भी समाचार पत्र को याद करना कठिन होगा। आधुनिक समय में समाचार पत्र कोई अधिक विलासिता नहीं है, यह एक आवश्यकता बन गई है। यह एक मजबूत झटके के लिए एक अंधकार की तरह होगा अगर कोई समाचार पत्र नहीं थे।
समाचार पत्र हमें वर्तमान घटनाओं के बारे में अच्छी तरह से सूचित करते हैं। वे शासकों और नियमों के बीच संचार का सबसे अच्छा साधन हैं। वे सरकार की मदद करते हैं। जनता को परिचित करना और विभिन्न कानूनों और आदेशों के बारे में अपने विचार व्यक्त करना। अखबारों के बिना सरकार। लोगों की इच्छाओं से अनभिज्ञ बने रहेंगे, उनकी स्थिति उनकी आवश्यकताओं और आवश्यकताओं और इस प्रकार यह अपने कार्यों को ठीक से नहीं कर पाएंगे। अखबारों के अभाव में, सरकार लोगों की राय और भावनाओं के साथ संपर्क खो देगा। जनता और सरकार के बीच एक खाई बन जाएगी।
लोकतंत्र दिन का क्रम है और अखबार लोकतंत्र की चोरी पर प्रकाश डालता है। एक लोकतांत्रिक देश के लिए प्रेस काफी अपरिहार्य है। लोकतंत्र में प्रेस की इच्छा लोगों की इच्छा है। तो अखबार के अभाव का मतलब होगा कि लोगों की आवाज नहीं सुनी जाएगी। लोगों का प्रवक्ता वहां नहीं होता। लोगों के दो अधिकारों का एक संरक्षक गायब हो जाएगा। सरकार की अन्यायपूर्ण नीति के खिलाफ। बंद होगा। सरकार। पार्टी और राजनेता को कोई डर नहीं होगा। संक्षेप में, लोकतंत्र का पूरा हिस्सा नीचे गिर जाएगा।
किसी देश के सामाजिक जीवन पर प्रेस का प्रभाव बहुत गहरा है। यह सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जनता की राय का समर्थन करता है। यह नागरिक भावना और भावना को भी बढ़ावा देता है। यह लोगों को एक दूसरे के लिए सहायक होने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह उन्हें समाज सेवा के विचार से प्रेरित करता है। यह बुराइयों के खिलाफ लड़ता है और उन्हें उजागर भी करता है। इसलिए, यदि समाचार पत्र नहीं होते, तो समाज इन सभी लाभों से वंचित रह जाता।
अख़बार पूरी दुनिया को सहानुभूति के बंधन में बांधता है। वे राष्ट्रों के बीच सद्भावना पैदा करते हैं। वे दुनिया की समस्याओं में सहानुभूति रखते हैं। इसलिए अखबारों की अनुपस्थिति में, हमारे पास दुनिया में राजनीतिक आंदोलनों, सामाजिक उत्थान और आर्थिक विकास की कोई झलक नहीं होगी। हमारे पास कोई मानसिक नाश्ता नहीं होगा और जीवन में कोई आकर्षण नहीं होगा।
हम अखबार को दुनिया का आईना और मानव जाति की डायरी को याद नहीं कर सकते। समाचार पत्रों के बिना दुनिया के बारे में सोचना असंभव है।
Answer:
आधुनिक मनुष्य की आवश्यकताएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं । केवल भोजन, वस्त्र और घर तक उसकी आवश्यकताएँ सीमित नहीं है । आज समाचारपत्र आम व्यक्ति की दैनिक आवश्यकताओं का हिस्सा बन गए हैं । हममें से कई व्यक्तियों का दिन इसे पढ़ने से प्रारंभ होता है । समाचारपत्र के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
विभिन्न लोगों के लिए समाचारपत्र का अर्थ अलग-अलग है, क्योंकि समाज में भिन्न-भिन्न रुचियों और पसंदों वाले व्यक्ति रहते हैं । इस प्रकार समाचारपत्रों के उपलब्ध न होने पर इन विभिन्न रुचियों वाले लोगों पर प्रभाव भी भिन्न-भिन्न पड़ेगा । शिक्षित लोग समसामयिक घटनाओं की सूचनाओं की कमी को महसूस करेंगे ।
कई भ्रष्ट राजनीतिज्ञों और क्षेत्रीय नेताओं के लिए तो यह एक सुअवसर होगा । खेल-जगत की सूचनाओं तथा नए कीर्तिमानों को चाहने वालों का मनोरंजन नहीं हो सकेगा । समाचारपत्रों में प्रकाशित खेल पहेलियों, हास्य क्षणिकाओं, सिनेमा जगत की खट्ठी-मीठी खबरों के बिना कुछ लोग सूना-सूना महसूस करेंगे ।
समाचारपत्रों में प्रकाशित व्यापार और जीविका संबंधी विज्ञापनों के अभाव से इन क्षेत्रों को भारी धक्का पहुँचेगा । जन संचार के अन्य साधन जैसे रेडियों, टेलीविजन और सिनेमा आदि एक सीमा तक ही सूचनाएँ प्रदान कर सकते है । समाचारपत्र जैसा सस्ता सूचना-माध्यम और कोई नही है ।
आज कई ऐसे अवसर होते है जबकि पत्रकारों या मुद्रणालयों की हड़ताल के कारण हमें अपने प्रिय दैनिकों की अनुपस्थिति में दिन बिताना पड़ता है । यदि एक पत्र नहीं मिलता तो हम दूसरे समाचारपत्र को लेने के लिए भागते हैं । कभी-कभी प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, आग, भूकम्प अथवा साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति में हमें समाचारपत्रों का ध्यान भी नहीं आता है । कभी दैनिक कार्यक्रम में फेर बदल होने, बीमारी या यात्रा के कारण हम समाचारपत्र पढ़ने के अपने नियमित कार्यक्रम को स्थगित कर देते हैं ।
अधिकांशत: सभी व्यक्तियों के लिए समाचारपत्र आवश्यकता ही नही बल्कि हमारी मुख्य प्रवृति और जीवन का अंग बन गए हैं । तथापि कुछ ऐसे अशिक्षित लोग भी विद्यमान हैं, जिनके लिए समाचारपत्र होना या न होना बराबर ही है । क्या हमारे पूर्वजों का समाचारपत्र रहित जीवन कहीं अधिक सुखी और शांतिपूर्ण नहीं था?