Hindi, asked by hemasachdeva32, 9 months ago

यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बँधे होते तो क्या वे विरह वेदना का अनुभव कर पाते ?

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Answered by sonisiddharth751
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Answer:

\huge\bf\underline\red{Question:-}

यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बँधे होते तो क्या वे विरह वेदना का अनुभव कर पाते ?

\huge\bf\underline\red{answer:-}

यदि उद्धव स्नेह के धागे से बंधे होते तो शायद विरह वेदना का अनुभव कर पाते, उद्धव श्री कृष्ण के पास रहकर भी प्रेम को नहीं समझ पाते हैं ।

Answered by bhanuprakashreddy23
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Explanation:

यहां सूर के भ्रमरगीत से 4 पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास संदेश भेजा था। उन्होंने निर्गुण ब्रह्मा एवं योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया। गोपियां ज्ञान मार्ग की बजाए प्रेम मार्ग को पसंद करती थी इस कारण उंहें उद्धव का शुष्क संदेश पसंद नहीं आया। तभी वहां एक भंवरा आ पहुंचा यहीं से भ्रमरगीत का प्रारंभ होता है।

गोपियों ने भ्रमर के बहाने उद्धव पर व्यंग्य बाण छोड़े। पहले पद में गोपियों की यह शिकायत वाजिब लगती है कि यदि उद्धव कभी स्नेह के धागे से बंधे हो थे तो वह विरह की वेदना को अनुभूत अवश्य कर पाते। दूसरे पद में गोपियों की स्वीकारोक्ति कि उनके मन की अभिलाषाए मन में ही रह गई। कृष्ण के प्रति उनके प्रेम की गहराई को अभिव्यक्त करती है। तीसरे पद में उद्धव के योग साधना को कड़वी – ककड़ी जैसा बता कर अपने एकनिष्ठ प्रेम से दृढ़ विश्वास प्रकट करती है। चौथे पद में उद्धव को ताना मारती है , कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म – प्रजा का हित याद दिलाया जाना सूरदास की लोक धर्मिता को दर्शाता है।

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