यथा योग्य व्यवहार किस समाज की शिक्षा है
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आर्यसमाज का सातवां नियम है कि 'सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्त्तना चाहिये। ' हमें लगता है कि व्यवहार के नियमों का यह एक आदर्श वाक्य है। जो मनुष्य, समाज व देश इसके अनुसार व्यवहार करेगा वह हमेशा उन्नति को प्राप्त करेगा और जो इसके विपरीत व्यवहार करेगा, वह उन्नति के स्थान पर अवनति को प्राप्त होगा।
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