Hindi, asked by chauhanjulee8, 2 months ago

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मध्यकार तक संभवत: किन बलियो का
विकास हो चुका था।​

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Answered by pssekn20
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Answer:

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Answered by ayushbinita1983
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Explanation:

पुण्यतोया भगवती गंगा , तम-अघ हारिणी तमसा, वाशिष्ठी सरयू, काम को दग्ध करने वाले कामेश्वर के कवलेश्वरताल, कुशहृदविंदु के सुरथ- सुरहताल आदि जल स्त्रोतों की अगाध जलराशि में ओतप्रोत जन्मभूमि के भू-भाग पर जब लिखने के लिये बैठता हूँ, तो लेखनी से अधिक द्रुत गति से बुद्धि और भावनाएँ दौड़ने लगती हैं।

खोंग यही नाम लिखा है, वैश्विक मानव जाति के इतिहासकार रागेय राघव ने अपनी पुस्तक अंधेरा रास्ता में आज हिमालय की उपत्यकाओं से निकल कर बंगाल की खाड़ी में महासागर से मिलने वाली जीवनदायिनी गंगा का। कालान्तर में यह कभी फारस की खाड़ी ( श्रीनार- क्षीरसागर) से आती थी। आचार्य चतुरसेन की माने तो इसीलिये हरिप्रिया- विष्णु प्रिया कही जाती है।

विमुक्त- भृगु क्षेत्र की बलियाग भूमि में भवानी सरयू-घार्घरा को वाशिष्ठी उस कृतज्ञता में कहना इस कारण से सर्वथा उपयुक्त है कि महर्षि भृगु शिष्य दर्दर अवध के कुलगुरु वशिष्ठ जी की आज्ञा से ही इस देवहा को गंगा से मिलाने लाये थे।

विश्व के विद्वतजन विज्ञ है, मानवीय संस्कृतियां सदानीरा सुरसरि तटों पर पनपीं, पुष्पित पल्लवित हुई थी ।

सृष्टि सृजन की छठवीं पीढ़ी का होमोसैपियन मानव जब जंगली जीवन से थोड़ा ऊपर उठकर समूह में पर्वत कन्दराओं में रहने लगा था। तब नयी धरती की खोज शुरू हुई। खोंग नदी की जलधारा में बाँस की बनी तरणियां तैरने लगी थी।उत्तर में हिमालय पारस्य पर्वतीय प्रदेशों के कठोर जीवन से खोंग के मैदानी भू-भाग का जीवन सरल-सुखद है । ऊर प्रदेश के निषाद-मल्लाह नाविकों का यही कहना है। समतल भूमि, सम शीतोष्ण दिवस, प्रचुर आखेट और भोजन भी है। यह खोंग ही वहाँ सदानीरा है। हा हा (सर्प) डंकार ( शेर-बाघ) का भय भी कम है।

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