English, asked by sujalrawat13201320, 5 hours ago

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Answered by AryanKrishna980
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Answer:

बात अस्सी के दशक के आखिर की है। स्वामी जी ने मुंगेर में जिस बिहार स्कूल आफ योग को स्थापित किया था, एक झटके में उसे छोडकर निकल गये। देश विदेश में योग का परचम लहराने के बाद एक झटके में उठ खड़े हुए। शरीर पर जो वस्त्र था उसे ही लेकर चल पड़े। सन्यासी तो विरक्त होता है। उसे सांसारिक वस्तुओं से कैसा मोह? वहां से निकले तो बनारस आये और भिखारियों के बीच रहकर भोजन प्रसाद लिया। चाहते तो आराम से कोई कोठी लेकर बनारस में रहते इतना धन वैभव उनके आसपास था। लेकिन नहीं। त्याग तो त्याग होता है। जब शरीर भी एक दिन त्याग ही देना है तो सांसारिक वस्तुओं का मोह करके क्या प्राप्त होगा?

बनारस से आगे बढे तो विंध्याचल। वहां से आगे बढे तो नाशिक में त्रयंबकेश्वर। वहां एक अनाम साधु की तरह रहे कई महीने। वहीं एक दिन आकाशवाणी हुई। "चिताभूमौ।" ये आकाशवाणी आकाश में गर्जना करके नहीं हुई थी। चिदाकाश से आवाज आई। चिताभूमौ। उन्हें कुछ दृश्य भी दिखे। बस स्वामी जी संकेत समझ गये। अगला प्रस्थान कहां करना है। लेकिन मुश्किल ये थी कि चिताभूमौ है कहां? आश्रम छोड़ने के बाद पहली बार अपने सहयोगियों को संपर्क किया। उन्हें वह दृश्य समझाया और कहा कि जाओ खोजो ऐसी भूमि कहां है?

लेकिन खोजने की जरुरत कहां थी? जिसने संदेश दिया उसने रास्ता भी दिखाया और स्वामी जी के सहयोगियों को सीधे वहीं पहुंचाया जो दृश्य दिखा था। वही कुआं। वही भूमि। देवघर के पास रिखिया की चिताभूमि। जहां पहुंचकर स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने पंचाग्नि साधना शुरु की। जेठ की तपती दोपहरी में पूरे दिन अपने शरीर के आसपास चार अग्निकुंड बनाकर उसके बीच बैठकर तपस्या करने को पंचाग्नि साधना कहते हैं। इसी साधना के दौरान उन्होंने वहां सीता कल्याणम महोत्सव शुरु किया। फिर धीरे धीरे आसपास के गांवों की सेवा का कार्य शुरु हुआ। जिस परमात्मा ने स्वामी जी को नाशिक में चिताभूमौ का आदेश दिया था अब वही उन्हें कार्य भी दे रहा था।

एक दिन ध्यान में बैठे तो एक महिला के रोने की आवाज आई। वह एक जले हुए घर के सामने बैठी हुई थी। उसके साथ उसके छोटे छोटे बच्चे भी थे। ध्यान टूटा तो स्वामी जी ने कहा आसपास के गांवों में जाओ और पता करो कि किसका घर जला है। उसकी हर संभव मदद करो। संन्यासी निकले और चार पांच गांवों में पता करने के बाद पता चला कि एक गरीब परिवार की झोपड़ी जल गयी है। महिला और उसके बच्चे बच गये लेकिन उसका पति झोपड़ी में जलकर मर गया है। तत्काल जो सहयोग अपेक्षित था, वह हुआ। उसका नया घर बना। उसकी आर्थिक सहायता हुई। उसके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था हुई।

इस तरह ये क्रम चल पड़ा। स्वामी सत्यानंद सरस्वती तो 2009 में यह कहकर चले गये कि वो लौटकर आयेंगे लेकिन आज चिताभूमि रिखिया के आसपास के 100 गांव के बच्चे आश्रम के बच्चे हैं। रिखिया आश्रम अब सौ गांवों का अपना आश्रम है। वो आदिवासी वनवासी जिन्हें पढना भी नहीं आता था वहां के बच्चे फर्राटेदार अंग्रेजी और संस्कृत बोलते हैं। शिक्षा, संस्कार, व्यापार रोजगार आश्रम सबकी सब प्रकार से सेवा करता है। स्वामी जी कहते थे, संन्यासी चक्रवर्ती सम्राट होता है। वह देने के लिए सन्यासी बनता है। उसे कोई क्या दे सकता है?

काश पूडीखोर बाबाओं को भी परमात्मा ऐसी ही कोई आकाशवाणी कर देते जैसा स्वामी जी को किया। समाज का सारा संकट मिट जाता।

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