Hindi, asked by navkirtansingh1557, 8 months ago

YUDDH PAR ANUCHED LIKHE​

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Answered by diya2005koul
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Explanation:

युद्‌ध का इतिहास मानव सभ्यता के उदय के साथ ही प्रारंभ हो गया । युद्‌ध पहले भी होते थे और आज भी हो रहे हैं । यह सत्य है कि समय-समय पर कारक परिवर्तित होते रहे हैं । आदिकाल में जहाँ युद्‌ध जानवरों अथवा जमीन के लिए लड़े जाते थे वहीं आज के युग में युद्‌ध के तीन प्रमुख कारक पैसा, स्त्री एवं जमीन हैं ।

भारत में अंग्रेजी शासन से पूर्व देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था । सभी राजा अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते थे । युद्‌ध के द्‌वारा विजय से संपन्नता प्राप्त करना उनका प्रमुख उद्‌देश्य होत । था तथा साथ ही साथ पडोसी राज्यों में उनका वर्चस्व बढ़ता था जिसके परिणामस्वरूप छोटे राज्य स्वयं ही उनकी सत्ता स्वीकार कर लेते थे ।

नारी भी इतिहास के अनेक प्रमुख युद्‌धों का कारण बनी। उस समय में युद्‌ध द्‌वारा सुंदर स्त्री व राजकुमारी को विजयश्री में प्राप्त करना राजाओं की आन और शान समझा जाता था । आज के समय में युद्‌ध के स्वरूप में अनेक परिवर्तन आए हैं । राज्यों के मध्य छोटे-छोटे आपसी विवाद भी विशाल रूप ले लेते हैं । पूर्व में हुए दो विश्व युद्‌धों का यदि आकलन करें तो हम देखते हैं कि ऐसा नहीं था कि उन युद्‌धों को नहीं टाला जा सकता था । फिर भी ये युद्‌ध लड़े गए तथा इसके पश्चात् इसकी तांडव लीला को हम आज भी महसूस कर सकते हैं ।

प्राचीनकाल के युद्‌ध हों या फिर आधुनिक विश्व युद्‌ध, सभी छोटे कारणों से प्रारंभ होते हैं और बढ़ते-बढ़ते विशाल रूप ले लेते हैं । आज युद्‌ध केवल सेनाओं के बीच तक ही सीमित नहीं रह गए हैं अपितु ये पूर्ण मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जाते हैं।

इतिहास साक्षी है कि युद्‌धों में अनेक राज्यों ने न केवल जान-माल की क्षति उठायी है अपितु वहाँ की कला, संस्कृति व सभ्यता सभी नष्ट हो गए हैं । आधुनिक युद्‌धों में सैनिक ही नहीं अपितु अनेक बच्चे, औरतें, बूढ़े, जवान, नागरिक युद्‌ध का शिकार बनते हैं जिनका युद्‌ध से कोई लेना-देना नहीं होता है ।

आतंकवाद इन युद्‌धों का एक अन्य रूप है । कुछ स्वार्थी व असामाजिक तत्व असहाय बच्चों व नागरिकों को मारकर अपनी अनैतिक माँगों को पूरा करना चाहते हैं । भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद से निरंतर जूझ रहा है । अब तक न जाने कितने लोग इस आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं । आतंकवाद को काबू में रखने के लिए सरकार को सुरक्षा के मद में काफी व्यय करना पड़ता है ।

इस तरह देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है । सन् 2001 में अमेरिका पर हुआ जबरदस्त हमला इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें पल भर मैं हजारों लोग असमय काल के शिकार हो गए और सारे विश्व की अर्थव्यवस्था की नींव हिल गई थी ।

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Answered by amandevi1972
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Answer:युद्ध सदैव से ही बड़े निर्दयतापूर्ण और क्रूर रहे हैं । यदि हम इतिहास के पन्ने पलटें तो देखेगे कि संसार के महान् विजेताओ ने खून-खराबा. क्रूरता और लूटपाट में बडा आनन्द लिया है ।

नादिरशाह, चंगेज खां और महमूद गजनवी जैसी खूनी और अत्याचारी आक्रमणकारियों के नाम से आज तक हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं । सभी आम आदमी युद्ध रूपी दानव से पूणा करते हैं, लेकिन कुछ युद्ध-लोलुप लोग अपने स्वार्थ के लिए युद्ध छेड़ देते हैं, जबकि साधारण जनता शांति चाहती है ।

युद्ध से जन-धन की भारी हानि होती है:

युद्धों में सैकड़ों-हजारों लोग जान से हाथ धो बैठते हैं और संपत्ति का भारी नुकसान होता है । प्राचीन काल के युद्धों में अधिकाशतया सेनायें ही भाग लेती थीं, लेकिन आधुनिक युद्धो से समूची जनता भी प्रभावित होती है । इस शताब्दी में हम दो विश्व-युद्ध देख चुके हैं, जिनमें जन-धन की भारी हानि हुई है । युद्धों के प्रभावो से हमारा सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन भी अछूता नहीं रहता ।

इससे गरीब और अमीर सभी प्रभावित होते है । समूचे शहर और नगर बरबाद हो जाते हैं । पुरुष, स्त्री, बच्चे, जवान, बूढे सभी मौत के घाट उतर जाते हैं । परिवार बिखर जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं तथा बुड्‌ढे बेसहारा हो जाते हैं । आज के युद्ध नरक का खुला दृश्य उपस्थित कर देते हैं ।

व्यापार और उद्योगों की हानि:

आज के युद्धों में अंधाधुंध बमबारी होती है । दोनों ही पक्षों द्वारा एक-दूसरे के प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक महत्त्व के स्थानों को निशाना बनाया जाता है । बड़े-बड़े कारखाने क्षणों मे मिट्टी में मिल जाते हैं । आवागमन के साधन नष्ट हैं, जिनसे भुखमरी फैल जाती है । युद्धो के समय सरकारें अपन समूचा धन और शक्ति युद्ध-सामग्री जुटाने में लगा देती हैं, जिससे नष्ट हुए उद्योग और व्यापार के पुननिर्माण में बाधा पडती है ।

युद्ध के दौरान देश के पूजीपति और जमाखोर अवसर का लाभ उठाकर भारी मुनाफा कमाते हैं । वे युद्ध रूपी चिता में अपनी रोटियाँ सेकमें जैसा मृणित कार्य करते है, वे वस्तुओं को छिपाकर कृत्रिम कमी पैदा करके कीमतें बढा देते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं । इससे जनता का संकट और भी बढ जाता है । साधारण जनता भुखमरी का सामना करती है, जबकि ये चद असामाजिक तत्त्व अपनी तिजोरियां भरते हैं ।

परमाणु युद्ध से मानवता को खतरा:

द्वितीय विश्व-युद्ध में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नामक नगरों पर गिराये गये परमाणु बमों के प्रभाव से हजारों लोग मर गये तथा समूचे नगर नष्ट हो गये । इसका बुरा प्रभाव बचे हुए लोगों की कई पीढ़ियों पर पडा है । आज उससे हजारों गुना शक्ति के हाइड्रोजन बम तैयार किए जा चुके है । इतने दूरगामी अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया जा चुका है कि हजारों मील दूर एकदम सही निशाने पर मार की जा सकती है ।

इन अस्त्रों के प्रयोग से समूची मानवता नष्ट होकर प्रलय की स्थिति आ सकती है । ससार के बड़े राष्ट्रो के पास ऐसे अस्त्रों का भण्डार एकत्र है, लेकिन वे एक-दूसरे से डरते हैं । उनके बीच समझौते की वार्ता चल रही हैं । हमे आशा करनी चाहिये कि ईश्वर इन्हें सद्‌बुद्धि दे, ताकि मानवता को नष्ट होने से बचाया जा सके ।

उपसंहार:

संसार के शांतिप्रिय लोगों को एक होकर ऐसे जनमत का निर्माण करना चाहिये, जिससे मजबूर होकर बड़े राष्ट्र इन विनाशकारी परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने का समझौता कर लें और हमे भावी युद्ध की बीभरत्तता न देखनी पड़े ।

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