Yuva shakti ka sahi desh me upayog
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युवा शक्ति का लोहा दुनिया भर में माना जाता है लेकिन युवा शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना बहुत बड़ी चुनौती होती है और जहाँ इस शक्ति को सही दिशा में मोड़ा जा सका है वहीं नई ऊँचाइयाँ नापी जा सकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि युवा शक्ति की उर्जा का सकारात्मक कार्यों में उपयोग करना समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है और इसे निभा कर ही युवाओं को सृजनात्मक कार्यो में लगाया जा सकता है।
समाजशास्त्री डॉ. भूपेंद्र गौतम इसे कुछ ऐसे व्यक्त करते हैं, ‘ये बात सर्वव्यापी है कि भारत में युवाओं की जितनी संख्या है, उतनी और कहीं नहीं है। भारत के साथ एक सकारात्मक पहलू यहाँ के युवाओं का संस्कारी होना है। पश्चिमी देशों में युवाओं के पथभ्रष्ट होने की काफी आशंका रहती है, उसकी तुलना में भारत में ऐसे होने की आशंका बहुत कम है।
इतने सारे सकारात्मक पहलुओं के बावजूद अगर युवाओं में नकारात्मकता पैदा हो रही है, तो इसे दूर करने के लिए समाज में हर स्तर पर प्रयास की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘समाज का युवा वर्ग विभाजित सा है, एक तरफ महानगरों की युवा शक्ति है, जो निजी क्षेत्रों में लगातार सफलता के नए आयाम छू रही है, वहीं दूसरा पहलू हम हिंसक घटनाओं के रूप में रोज टीवी पर देख रहे हैं। युवाओं की इस नकारात्मक शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना समाज और सरकार का सामुदायिक दायित्व होना चाहिए।’
कई रिपोटों के मुताबिक मानवशक्ति के मामले में भारत से ज्यादा चीन में एक बच्चे की नीति के चलते युवाओं की संख्या कम और बुजुर्गों की संख्या में इजाफा हो रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी समय-समय पर अपने देश के युवाओं और छात्रों को भारत के युवाओं की उभरती शक्ति से चौकस रहने की सलाह देते नजर आ रहे हैं।
आदिवासी युवाओं के लिए काम करने वाले संगठन ‘युवा’ के संयोजक मुक्तिबोध शर्मा बताते हैं, ‘रोज के अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि सही दिशा देने पर गांवों के युवा भी विदेशों में झंडे गाड़ सकते हैं। पर अगर उन्हें कोई आशा नहीं मिलेगी, तो वे कब हथियार उठा लेंगे, आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते।’
घाटी में हिंसक गतिविधियों, तेलंगाना को लेकर उस्मानिया विश्वविद्यालय में चल रहे प्रदर्शन और आतंकवाद एवं नक्सलवाद में युवाओं की कथित तौर पर बढ़ती संख्या पर टिप्पणी करते हुए मुक्तिबोध ने कहा, ‘घाटी में आतंकवाद और अन्य हिस्सों में नक्सलवाद के घेरे में आ रहे युवाओं के बारे में तो सच्चाई सबके सामने है। लंबे समय से शिक्षा और रोजगार से कोसों दूर रह रहे इन युवाओं को बरगलाना सबसे आसान है। पर विश्वविद्यालयों में हिंसा की घटनाओं में इजाफा सरकार के लिए चिंता का नया सबब बन सकता है।’
उल्लेखनीय है कि पृथक तेलंगाना प्रदेश की माँग को लेकर आंध्रप्रदेश का उस्मानिया विश्वविद्यालय कई महीनों से हिंसक घटनाओं का केंद्र बना हुआ है, जहाँ के छात्र तेलंगाना की माँग के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं।
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