ज़ोर ज़बरदस्ती करने पर ‘बात’ के साथ क्या हुआ?
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कवि ने जब भावों को भाषा के दायरे में बाँधने की कोशिश की तो बात का प्रभाव समाप्त हो गया। वह शब्दों के चमत्कार
में खो गई और असरहीन हो गई।
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