Hindi, asked by chittesrinivas6942, 4 months ago

0. माजी राष्ट्र र
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Answered by mukeshdevi63376
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संघ के प्रसंविदा के अनुच्छेद आठ ने संघ को कार्य दिया कि “शस्त्रीकरण को उस निम्नतम बिन्दु तक सीमित रखें जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी हो और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का सामान्य क्रिया द्वारा प्रवर्तन हो सके.”[116] संघ की समय एवं उर्जा का अधिकांश भाग निरस्त्रीकरण को समर्पित था, हालांकि कई सदस्य सरकारें अनिश्चयी थी कि क्या इतना व्यापक निरस्त्रीकरण प्राप्त किया जा सकता है या यहां तक कि यह वांछनीय था कि नहीं। [117] मित्र राष्ट्र भी वर्साय की संधि से बाध्य थे कि निरस्त्र करने के लिए प्रयास करें एवं पराजित राष्ट्रों पर जो शस्त्र प्रतिबंध लागू किए गए हैं उन्हें विश्वव्यापी निरस्त्रीकरण की दिशा में एक प्रथम प्रयास के रूप में वर्णित किया गया।[117] संघ प्रसंविदा ने संघ को प्रत्येक राज्य के लिए एक निरस्रीकरण योजना तैयार करने के लिए निर्दिष्ट किया परंतु परिषद ने इस जिम्मेदारी को 1926 में गठित विशेष आयोग को 1932-34 के विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन की तैयारी करने के लिए सौंप दिया। [118] निरस्त्रीकरण को लेकर संघ के सदस्यों में भिन्न-भिन्न दृषिटिकोण थे। फ्रांसीसी अपने शस्त्रों को इस गारंटी के बिना कम करने के लिए अनिच्छुक थे कि उनपर आक्रमण होने पर सैनिक सहायता मिले। पोलेण्ड़ एवं चेकोस्लोवाकिया ने पश्चिम की तरफ से असुरक्षित महसूस किया और चाहते थे कि संघ द्वारा आक्रामक कार्यवाही एवं उन्हें निशस्त्र करने से पहले सदस्यों को मजबूत बनाया जाए.[119] इस गारंटी के बिना वे अपने शस्त्रों को कम नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि जर्मनी से आक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी द्वारा पुर्नशक्ति प्राप्त करने से आक्रमण का खतरा और बढ़ गया, विशेषकर जब हिटलर ने सत्ता प्राप्त की और 1933 में जर्मनी का चांसलर बना विशेष रूप में जर्मनी द्वारा वर्साय की संधि को उलटने के प्रयास एवं जर्मन सेना के पुर्ननिर्माण के कारण फ्रांस निरस्त्रीकरण के लिए अनिच्छुक होता गया।[118]

विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन 1932 में जेनेवा में राष्ट्रसंघ द्वारा बुलाया गया जिसमें 60 राष्ट्रों के प्रतिनिधि थे। सम्मेलन के शुरू में शस्त्रों के विस्तार पर एक वर्ष का विराम लगाने का प्रस्ताव दिया गया, जिसे बाद में कुछ महीने बढ़ाया गया।[120] निरस्त्रीकरण आयोग ने फ्रांस, इटली, जापान एवं ब्रिटेन से प्रारंभिक सहमति ले ली कि वो अपनी नौ सेनाओं के आकार में कटौती करें। केलॉग-ब्रायण्ड समझौता, जिसे आयोग ने 1928 में सम्पन्न कराया, युद्ध को गैर-कानूनी घोषित करने के अपने उद्देश्य में असफल हो गया। अंततः, आयोग 1930 के दशक में जर्मनी इटली, एवं जापान के द्वारा सैनिक तैयारी को रोकने में असफल रहा। संघ उन सभी बड़ी घटनाओं पर अधिकांशतया शांत रहा जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ यथा- राइनलैंण्ड का हिटलर द्वारा पुनः-सैन्यीकरण, ऑस्ट्रिया के सुडेटनलैण्ड एवं एंसक्लूस पर कब्जा, जिसकी वर्साय संधि ने मनाही की थी। वास्तव में, संघ के सदस्यों ने स्वयं को पुनः-सैन्यीकृत किया। 1933 में जापान ने संघ के निर्णय को मानने की बजाय आसानी से इससे अलग हो गया, जैसा कि जर्मनी ने 1933 में किया (फ्रांस एवं जर्मनी के बीच में शस्त्र समता स्थापित करने में समझौता करा पाने में विश्व निरस्त्रीकरण सम्मेलन की असफलता को बहाना बनाकर) और इटली ने 1937 में. डेन्जिंग में संघ कमिश्नर शहर पर जर्मन दावे पर विचार करने में असमर्थ थे, जो 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के छिड़ने में महत्वपूर्ण कारण बना।[कृपया उद्धरण जोड़ें] संघ का अंतिम महत्वपूर्ण कार्य था सोवियत संघ का दिसम्बर 1939 में निलंबन जब इसने फिनलैण्ड पर आक्रमण किया।

सामान्य कमजोरियों संपादित करें

पुल में अंतराल बोर्ड पर लिखा है "इस राष्ट्र संघ पुल को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा डिजाइन किया गया था"

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पंच मैगजीन से कार्टून, 10 दिसम्बर 1920, अमेरिका द्वारा खाली छोड़ी गई जगह का उपहास किया जब वह राष्ट्रसंघ में शामिल नहीं हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारंभ ने दर्शाया कि संघ अपने प्रारंभिक उद्देश्य में असफल रहा, जो भविष्य में किसी विश्वयुद्ध को टालता. इस असफलत के लिए विविध कारक जिम्मेवार थे, जिसमें बहुत सारा संगठन के भीतर के सामान्य कमजोरियों से जुड़ा था। अतिरिक्त रूप से, अमेरिका द्वारा संघ में शामिल होने की मनाही ने संगठन की शक्ति को सीमित किया।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

उत्पत्ति और संरचना संपादित करें

संघ का एक संगठन के रूप में उद्भव प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के लिए किए जा रहे शांति प्रयासों के हिस्से के रूप में मित्र राष्ट्रों द्वारा किया गया और इसलिए इसे “विजेताओं के संघ” के रूप में देखा गया।[121][122] इसने संघ को वर्साय की संधि से भी बांध दिया, जिससे जब संधि अप्रतिष्ठित एवं अलोकप्रिय हो गया, यह राष्ट्रसंघ में भी प्रतिबिम्बित हुआ।

संघ की तथाकथित तटस्थता ने इसे अनिर्णय के रूप में अभिव्यक्त किया। इसे अपने नौ सदस्यों, बाद में चलकर पंद्रह परिषद सदस्यों का सर्वसम्मत वोट किसी अधिनियम को पारित करने के लिए चाहिए; अतः निर्णयात्मक एवं प्रभावी कार्य असंभव नहीं तो मुश्किल था। यह अपने निर्णयों पर आने में धीमा भी था क्योंकि कुछ निर्णयों में संपूर्ण सभा की सर्वसम्मत मंजूरी आवश्यक थी। यह समस्या मुख्यतया इस वास्तविकता से निकली कि राष्ट्रसंघ के मुख्य सदस्य इस संभावना को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे कि उनकी नियति अन्य देशों द्वारा तय की जाएगी और इसलिए इसके परिणामस्वरूप, सर्वसम्मत वोट को लागू करके अपने को वीटो की शक्ति द

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