Social Sciences, asked by sureshchouhan0720, 7 months ago

1-12 फांसीसी क्रांति के तात्कालिक कारण क्या था?​

Answers

Answered by rakeshkushwaha379057
5

Answer:

परिस्थितियाँ संपादित करें

क्रांति के कारणों को सामाजिक परिस्थितियों में भी देखा जा सकता है। फ्रांसीसी समाज विषम और विघटित था। वह समाज तीन वर्गों/ स्टेट्स में विभक्त था। प्रथम स्टेट्स में पादरी वर्ग, द्वितीय स्टेट्स में कुलीन वर्ग एवं तृतीय स्टेट्स में जनसाधारण शामिल था। पादरी एवं कुलीन वर्ग को व्यापक विशेषाधिकार प्राप्त था जबकि जनसाधारण अधिकार विहीन था।

(क) प्रथम स्टेट : पादरी वर्ग दो भागों में विभाजित था-उच्च एवं निम्न। उच्च वर्ग के पास अपार धन था। वह “टाइथ” नामक कर वसूलता था। ये शानों शौकत एवं विलासीपूर्ण जीवन बिताते थे, धार्मिक कार्यों में इनकी रूचि कम थी। देश की जमीन का पांचवा भाग चर्च के पास ही था और ये पादरी वर्ग चर्च की अपार सम्पदा का प्रयोग करते थे। ये सभी प्रकार के करों से मुक्त थे इस तरह उनका जीवन भ्रष्ट, अनैतिक और विलासी था। इस कारण यह वर्ग जनता के बीच अलोकप्रिय हो गया था और जनता के असंतोष का कारण भी बन रहा था। दूसरा साधारण पादरी वर्ग था जो निम्न स्तर के थे। चर्च के सभी धार्मिक कार्यों को ये सम्पादित करते थे। वे ईमानदार थे और सादा जीवन व्यतीत करते थे। अतः उनके जीवन यापन का ढंग सामान्य जनता के समान था। अतः उच्च पादरियों से ये घृणा करते थे और जनसाधारण के प्रति सहानुभूति रखते थे। क्रांति के समय इन्होंने क्रांतिकारियों को अपना समर्थन दिया।

(ख) द्वितीय स्टेट : कुलीन वर्ग द्वितीय स्टेट में शामिल था और सेना, चर्च, न्यायालय आदि सभी महत्वपूर्ण विभागों में इनकी नियुक्ति की जाती थी। एतदां के रूप में उच्च प्रशासनिक पदों पर इनकी नियुक्ति होती थी और ये किसानों से विभिन्न प्रकार के कर वसूलते थे और शोषण करते थे। यद्यपि रिशलू और लुई 14वें के समय कुलीनों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया था किन्तु आगे लुई 15वें और 16वें के समय से उन्होंने अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। यह कुलीन वर्ग भी आर्थिक स्थिति के अनुरूप उच्च और निम्न वर्ग में विभाजित थे।

(ग) तृतीय स्टेट : तृतीय स्टेट के लोग जनसाधारण वर्ग से संबद्ध थे जिन्हें कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं था। इनमें मध्यम वर्ग, किसान, मजदूर, शिल्पी, व्यापारी और बुद्धिजीवी लोग शामिल थे। इस वर्ग में भी भारी असमानता थी। इन सभी वर्गों की अपनी-अपनी समस्याएं थी। यें सब वर्ग असमानता के कारण सामांतों और चर्चों के उच्च पदाधिकारियों से घृणा करते थे। सामंतों का व्यवहार इनके साथ अपमानजनक था। इस वर्ग में कुछ लोगों के पास धन तथा योग्यता थी पर, समाज में प्रतिष्ठा नहीं थी। यह विषमता भी दूर हो सकती थी जब सामंती पिरामिड को खत्म कर दिया जाता। इस वर्ग की मांग थी बुराई दूर करने के लिए मेरी आवाज सुनी जाए। फ्रांस में किसानों की संख्या 2 करोड़ थी। इनमें अधिकांश अर्द्ध कृषक या बंधुआ थे। किसान राजा को विभिन्न कर देते थे।

किसानों की संख्या सर्वाधिक थी और इनकी दशा निम्न और सोचनीय थी। किसानों को राज्य, चर्च तथा अन्य जमीदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे और सामंती अत्याचारी को सहना पड़ता था। एक दृष्टि से किसानों के असंतोष का मुख्य कारण सामंतों द्वारा दिए जा रहे कष्ट एवं असुविधाएं थी और राजतंत्र इस पर चुप्पी साधे हुए था। इस तरह किसान इतने दुःखी हो चुके थे कि वे स्वयं ही एक क्रांतिकारी तत्व के रूप में परिणत हो गए और उन्हें क्रांति करने के लिए मात्र एक संकेत की आवश्यकता थी।

मध्यम वर्ग (बुर्जुआ) में साहुकार व्यापारी, शिक्षक, वकील, डॉक्टर, लेखक, कलाकार, कर्मचारी आदि सम्मिलित थे। उनकी आर्थिक दशा में अवश्य ठीक थी फिर भी वे तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के प्रति आक्रोशित थे। इस वर्ग को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था और पादरी और कुलीन वर्ग का व्यवहार इनके प्रति अच्छा नहीं था। इस कारण मध्यवर्ग कुलीनों के सामाजिक श्रेष्ठता से घृणा रखते था और राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन कर अपने अधिकारों को प्राप्त करने के इच्छुक था। यही कारण था कि फ्रांस की क्रांति में उनका मुख्य योगदान रहा और उन्होंने क्रांति को नेतृत्व प्रदान किया। मध्यवर्ग के कुछ आर्थिक शिकायतें भी थी। पूर्व के वाणिज्य व्यापार के कारण इस वर्ग ने धनसंपत्ति अर्जित कर ली थी किन्तु अब सामंती वातावरण में उनके व्यापार पर कई तरह के प्रतिबंध लगे थे जगह-जगह चुंगी देनी पड़ती थी। वे अपने व्यापार व्यवसाय के लिए उन्मुक्त वातावरण चाहते थे। इसके लिए उन्होंने क्रांति को नेतृत्व प्रदान किया। इस तरह हम कह सकते हैं कि फ्रांस की क्रांति फ्रांसीसी समाज के दो परस्पर विरोधी गुटों के संघर्ष का परिणाम थी। एक तरफ राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली और दूसरी तरफ आर्थिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली वर्ग थे। देश की राजनीति और सरकार पर प्रभुत्व कायम करने के लिए इन दोनों वर्गों में संघर्ष अनिवार्य था। इस तरह 1789 की फ्रांसीसी क्रांति, फ्रांसीसी समाज में असमानता के विरूद्ध संघर्ष थी।

आर्थिक परिस्थितियाँ संपादित करें

फ्रांस की आर्थिक अवस्था संकटग्रस्त थी। राज्य दिवालियापन के कगार पर पहुंच गया था। वस्तुतः फ्रांस के राजाओं की फिजूलखर्ची तथा लुई 14वें के लगातार युद्धों के कारण शाही कोष खाली हो गया था। उसकी मृत्यु के बाद लुई 15वें ने आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध एवं सप्तवर्षीय युद्ध में भाग लिया जिससे राजकोष पर बोझ और बढ़ा और अंततः लुई 16वें ने अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध में भाग लेकर फ्रांस की आर्थिक दशा को और भी जर्जर बना दिया।

सम्राट, साम्राज्ञी और उनके परिवार पर राज्य की अत्यधिक राशि खर्च की जाती थी। वर्साय का राजमहल राजकोष के लूटपाट का साधन बना था। दूसरी तरफ कर प्रणाली असंतोषजनक थी। विशेषाधिकारों के कारण सम्पन्न वर्ग कर से मुक्त था तथा गरीब किसान जो आर्थिक दृष्टि से विपन्न था, एकमात्र करदाता था। इस तरह राजकोष की स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई थी। सरकार फ्रांस में आय के अनुसार व्यय करने के बजाय व्यय के अनुसार आय को निश्चित करती थी।

Answered by BaroodJatti12
0

</p><p>\huge{\blue{\boxed{\boxed{\red{\ulcorner{\mid{\overline{\underline{\bf{Answer:-}}}}}}\mid}}}}

फ्रांस की क्रांति का एक महत्वपूर्ण कारण सामाजिक असमानता थी। मेडलिन के अनुसार, " 1789 इसवी की क्रांति का विद्रोह तानाशाही से अधिक समानता के प्रति थी।" फ्रांस की क्रांति के समय फ्रांस में समाज में अत्यधिक असमानता व्याप्त थी। समाज दो वर्गों में विभाजित था विशेषाधिकार वाले वर्ग में कुलीन लोग और पादरी थे।

Similar questions