Hindi, asked by vk4233540, 2 months ago

1. 2. पूस की रात कहानी का कथानक स्पष्ट कीजिए। 10/11 भगवान बुद्ध निबंध के माध्यम से स्वामी विवेकानंद युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं ? 10/12​

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Answered by suvarnahakke1
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Answer:

मैं बौद्ध धर्मावलम्बी नहीं हूँ, जैसा कि आप लोगों ने सुना है, पर फिर भी मै बौद्ध हूँ। यदि चीन, जापान अथवा सीलोन (श्रीलंका), उस महान तथागत के उपदेशों का अनुसरण करते हैं तो भारत वर्ष उन्हें पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानकर उनकी पूजा करता है। आपने अभी-अभी सुना कि मैं बौद्ध धर्म की आलोचना करने वाला हूँ, परन्तु उससे आपको केवल इतना ही समझना चाहिए। जिनको मैं इस पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानता हूँ, उनकी आलोचना! मुझसे यह सम्भव नहीं। परन्तु बुद्ध के विषय में हमारी धारणा यह है कि उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को ठीक-ठीक नहीं समझा। हिन्दू धर्म (हिन्दू धर्म से मेरा तात्पर्य वैदिक धर्म है) और जो आजकल बौद्ध धर्म कहलाता है, उनमें आपस में वैसा ही सम्बन्ध है, जैसा यहूदी तथा ईसाई धर्मो में। ईसा मसीह यहूदी थे और शाक्य मुनि हिन्दू। यहूदियों ने ईसा को केवल अस्वीकार ही नहीं किया, उन्हें सूली पर भी चढ़ा दिया। हिन्दूओं ने शाक्य मुनि को ईश्वर के रूप में ग्रहण किया है और उनकी पूजा करते हैं। किन्तु प्रचलित बौद्ध धर्म तथा बुद्धदेव की शिक्षाओं में वास्तविक भेद हम हिन्दू लोग दिखलाना चाहते हैं, वह विशेषतः यह है कि शाक्य मुनि कोई नयी शिक्षा देने के लिए अवतीर्ण नहीं हुए थे। वे भी ईसा के समान धर्म की सम्पूर्ति के लिए आए थे, उसका विनाश करने नहीं। अन्तर इतना है कि ईसा को प्राचीन यहूदी नहीं समझ पाये। जिस प्रकार यहूदी प्राचीन व्यवस्थान की निष्पत्ति नहीं समझ सके, उसी प्रकार बौद्ध भी हिन्दू के सत्यों की निष्पत्ति को नहीं समझ पाये। मैं यह बात फिर दुहराना चाहता हूँ कि शाक्य मुनि ध्वंस करने नहीं आये थे वरन् वे हिन्दू धर्म की निष्पत्ति थे। उसकी तार्किक परिणति और उसके सुक्तिसंगत विकास थे।

हिन्दू धर्म के दो भाग है- कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड। ज्ञानकाण्ड का विशेष अध्ययन संन्यासी लोग करते हैं। ज्ञानकाण्ड में जातिभेद नहीं हैं। भारतवर्ष में उच्च अथवा नीच जाति के लोग संन्यासी हो सकते हैं और तब दोनों जातियाँ समान हो जाती हैं। धर्म में जाति भेद नहीं है। जाति तो एक सामाजिक संस्था मात्र है। शाक्य मुनि स्वयं संन्यासी थे, और यह उनकी गरिमा है कि उनका हृदय इतना विशाल था कि उन्होंने अप्राप्य वेदों से सत्यों को निकालकर उनको समस्त संसार में विकीर्ण कर दिया। इस जगत में सब से पहले वे ही ऐसे हुए, जिन्होंने धर्म प्रचार की प्रथा चलायी, इतना ही नहीं, वरन् मनुष्य को दूसरे धर्म से अपने धर्म में दीक्षित करने का विचार भी सब से पहले उन्हीं के मन में उदित हुआ।

Answered by jassisinghiq
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Question:

कहानी 'पूस की रात' का कथानक स्पष्ट कीजिए।

Answer:

पूस की रात कहानी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई है।

Explanation:

यह कहानी मामूली किसान की है, जिसके नाम हल्कू है। हल्कू के पास थोड़ी जमीन है, उस जमीन पर वह खेती करके वह अपना गुजारा चलाता है, परंतु जो पैसे खेती से जमा होते थे वे पैसे चुकाने में ही चले जाते थे, वहा सर्दियों में कंबल बेच के पैसे जमा करता वह पैसे भी महाजन ले जाता था। उसकी पत्नी मुन्नी इसका बहुत विरोध करती थी किंतु वह भी बहुत लाचार थी कुछ नही कर पाती थी। हल्कू जब भी अपनी फसल की देख भाल करने जाता तब उसके अकेलेपन का साथी उसका पालतू कुत्ता जबरा भी उसके साथ जाता हैं। सर्दियों का समय था हल्कू और जबरा खेत जाते है रात के समय हल्कू के पास एक पतली चादर ही होती हैं, वह ठंड से सिकुड़ कर एक तरफ बैठ जाता हैं खेत जबरा के भरोसे छोड़ देता है जबरा के होते हुए कोई जानवर खेत में नही आयेगा परंतु एक दिन खेत में नील गायों का जुंड सारी फसल नष्ट करके चला गया हल्कू को नील गायों का आना पता चल गया था परंतु वह ठंड की वजह से उन्हें भगाने नही गया। अगली सुबह उसकी पत्नी ने उसे जगाया और चिंतित हो कर कहा सारी फसल नष्ट हो गई है अब हमे मजदूरी करके गुजारा करना पड़ेगा मुन्नी की यह बात सुन कर हल्कू बहुत प्रसन्न होगया था क्योंकि उसे रात में ठंड में नही सोना पड़ेगा।

अतः सही उत्तर है,कहानी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई है।

#SPJ2

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