1. अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण कैसे हो उपाय और सुझाव पर चर्चा |? (150 words)..
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आज के भारत के युवाओं को शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं होगा कि 70 और 80 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था आज की आधुनिक अर्थव्यवस्था से कितनी अलग थी, जिसमे नेहरू समाजवाद और इंदिरा गाँधी के बैंकों के राष्ट्रीयकरण का बड़ा असर था. 'स्वदेशी' देश की अर्थव्यवस्था का मन्त्र था, 'आत्मनिर्भरता' इसका अमल. घरेलू उत्पादन पर अधिक ज़ोर था, लेकिन इसकी क्वालिटी का स्तर कम और दाम ज़्यादा. बाहर से लौट कर आए विदेशी सामानों के मालिकों को बड़ी हसरत की निगाहों से देखा जाता था.
सरकार का दखल और कंट्रोल हर जगह नज़र आता था. यही वजह है कि उस दौर को 'लाइसेंस राज' और 'कोटा परमिट राज' कहा जाता था.
आम नागरिकों के लिए लंदन काफ़ी दूर था. विदेश यात्राएं पैसे वालों, देश के इलीट और सरकारी अफसरों के लिए थीं. विदेश आप केवल 500 डॉलर ले जा सकते थे. एम्बेसडर और फ़िएट कारें स्वदेशी गाड़ियां थीं, इसके बाद 1991 का वो ऐतिहासिक साल आया जब भारत ने अपना बाज़ार विदेश के लिए खोल दिया.
ये आधुनिक भारत के सबसे कठिन फैसलों में से एक था. लोगों के दिमाग़ में इस बात का ख़ौफ़ था कि कहीं ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह कोई विदेशी कंपनी देश को एक बार फिर से ग़ुलाम ना बना दे. इसके लिए एक पूरे माइंडसेट को बदलने की ज़रुरत थी.
माइंडसेट बदला, विदेशी टेक्नोलॉजी आई. विदेशी निवेश आया. आधुनिकीकरण हुआ, पुरानी नौकरियां गईं, नए अवसर पैदा हुए. मारुती-सुज़ुकी कारें बनने लगीं, चौड़े और चिकने हाइवे पर विदेशी कारें दनदनाती तेज़ रफ़्तार से चलने लगीं. नई फैक्टरियां लगीं. अलग-अलग क्षेत्रों में बाहर की चीज़ें आने लगीं जिनकी क्वालिटी स्वदेशी सामानों से बेहतर थीं और दाम भी कम, जिसके कारण स्थानीय कंपनियों को या तो खुद को बदलना पड़ा या अपना व्यसाय बंद करना पड़ा.
कोरोना लॉकडाउन, चीन
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जो काम भारत ने 1991 में शुरू किया वही चीन ने 1978 में शुरू किया था लेकिन जहाँ चीनियों ने अपने देश को एक 'ग्लोबल प्रोडक्शन हब' में बदल दिया, दुनिया भर की बड़ी से बड़ी कंपनियों ने अपनी फैक्टरियां चीन में लगाईं. ग़रीबी में जी रहे करोड़ो लोगों को रोज़गार दिया, अर्थव्यवस्था की रफ़्तार इस तेज़ी से बढ़ी कि आज अमरीका के बाद चीन दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी बन गया है.
वहीं भारत का ये काम अधूरा रह गया. फैक्टरियां यहाँ भी बनीं और ग़रीबी रेखा से ऊपर यहाँ के लोग भी उठे लेकिन चीन की तुलना में भारत की कामयाबी फीकी नज़र आती है. इस अर्थव्यवस्था ने ग़रीब और अमीर के बीच अंतर और बढ़ा दिया, बड़े शहरों में झोपड़पट्टियों में रहने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ी और उनकी ग़रीबी भी. प्राथमिक स्वास्थ्य कल्याण के क्षेत्र में सरकारें नाकाम रहीं, आईटी क्षेत्र में प्रगति हुई और भारत इसका एक गढ़ बना लेकिन कुशल श्रमिकों की एक बड़ी संख्या अमरीका और यूरोप काम करने चली गई.