1. ब्राह्मण तथा क्षत्रियों के क्या कर्त्तव्य हैं?
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ब्राह्मण के कर्तव्यों की चर्चा करते हुए उसके अधिकार इस प्रकार कहे गये हैं-
1-अर्चा 2-दान 3-अजेयता 4-अवध्यता
ब्राह्मण के कर्तव्य इस प्रकार हैं- 1-‘ब्राह्मण्य’ (वंश की पवित्रता)
‘2-प्रतिरूपचर्या’ (कर्तव्यपालन)
3-‘लोकपक्ति’ (लोक को प्रबुद्ध करना)
स्मृति ग्रन्थों में ब्राह्मणों के मुख्य छ: कर्तव्य (षट्कर्म) बताये गये हैं-
1-पठन 2-पाठन 3-यजन
4-याजन 5-दान 6-प्रतिग्रह
इनमें पठन, यजन और दान सामान्य तथा पाठन, याजन तथा प्रतिग्रह विशेष कर्तव्य हैं। आपद्धर्म के रूप में अन्य व्यवसाय से भी ब्राह्मण निर्वाह कर सकता था, किन्तु स्मृतियों ने बहुत से प्रतिबन्ध लगाकर लोभ और हिंसावाले कार्य उसके लिए वर्जित कर रखे हैं। गौड़ अथवा लक्षणावती का राजा आदिसूर ने ब्राह्मण धर्म को पुनरुज्जीवित करने का प्रयास किया, जहाँ पर बौद्ध धर्म छाया हुआ था।
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं। यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है। धर्माचरण में मुख्यतः है यज्ञ करना। दिनचर्या इस प्रकार है – स्नान, सन्ध्यावन्दनम्,जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र। अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं। ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं। अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध।
एक क्षत्रिय के कर्तव्य होते हैं. रक्षण व संरक्षण। , सभी समुदाय व राष्ट्रीयता की रक्षा करना तथा सभी प्राकृतिक संसाधनों व साधनों की संरक्षण करना जिस से उनके इस कर्तव्यो का फल ये सारा जगत समान रूप से प्राप्त कर सके। उन्हें प्रदान किये गए हथियार रक्षण व संरक्षण के लिए न कि आक्रमण के लिए है।
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