Economy, asked by babitasahni034, 1 year ago

1. भारत में गरीबी निवारण कार्यक्रमों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।​

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Answered by NitikMishra
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विगत दो दशकों के दौरान भारत और चीन के विकास सम्बन्धी अनुभव में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यह अन्तर है कि चीन ने विकास के क्रम में रोजगार में भी तेजी से वृद्धि की है। यह रोजगार उत्पादन एवं निर्माण क्षेत्र में सर्वाधिक है। चीन की कुल श्रमशक्ति के 22 प्रतिशत को औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार प्राप्त है जबकि भारत में यह 16 प्रतिशत (2000) है। चीन में आर्थिक सुधार के पहले दशक के बाद शहरी और ग्रामीण उद्यमों के विस्तार के साथ उसकी निर्धनता में आश्चर्यजनक कमी आई। इसकी वजह यह थी कि इन उद्यमों में ग्रामीण क्षेत्रों के अतिरिक्त श्रम को काम मिल गया। वहाँ 1978 में उत्पादन क्षेत्र में कुल रोजगार का ग्रामीण श्रेत्रों में हिस्सा जहाँ एक तिहाई से थोड़ा कम ही था, वहीं सन् 2000 तक यह बढ़कर आधा हो गया।

भारत की तुलना चीन के किए जाने की जरूरत है। दोनों देशों में तीव्र विकास तथा आय में असमानता में वृद्धि के बावजूद चीन में निर्धनता के दायरे में केवल 3-4 करोड़ लोग बच गए हैं, वहाँ औसत आय बढ़ी है तथा शिक्षा स्तर और जीवन सम्भाव्यता भारत की तुलना में काफी अधिक बढ़ी है। इसलिए, दोनों देशों में आय की बढ़ रही असमानता के बावजूद इन दोनों देशों की सामाजिक स्थिति की तुलना नहीं की जा सकती।

गरीबी निवारण के लिए रोजगारोन्मुख विकासरोजगारोन्मुख विकास से गरीबी में कमी आएगी और असमानता बढ़ेगी नहीं लेकिन 1990 के दशक में उत्पादन क्षेत्र की रोजगारपरक नमनीयता में बेहद कमी आई है। श्रमशक्ति में बढ़ोत्तरी की गति से रोजगार के बढ़ते रहने की एकमात्र वजह सेवा क्षेत्र में बढ़ोत्तरी रही है। लेकिन इसकी वजह से भारत में कृषि पर निर्भर लोग काफी पीछे छूट गए। नब्बे के दशक में खासतौर पर फसल उत्पादन की वृद्धि धीमी पड़ गई है।

आज भी भारत में कृषि क्षेत्र में 59 प्रतिशत लोग रोजगार पा रहे हैं। हालांकि मध्यम अवधि में श्रम को कृषि से बाहर अन्तरित करने की आवश्यकता पड़ेगी, लेकिन सरकार की सीधी कार्यवाही से अगले पाँच वर्षों में भारत की ग्रामीण निर्धनता को नाटकीय रूप के कम किया जा सकता है। निर्धन परिवारों को वार्षिक न्यूनतम रोजगार गारण्टी प्रदान करने के लिए नई सरकार संसद में एक विधेयक लाएगी। मूल प्रस्ताव के अनुसार, प्रत्येक राज्य में प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को न्यूनत्तम मजदूरी दर से हर वर्ष 100 दिनों के रोजगार का संवैधानिक अधिकार दिया जाना था। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से नए प्रारूप से संवैधानिक अधिकार को निकाल दिया गया है तथा इसे पूरे देश में लागू करने की कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। आरम्भ में यह देश के 150 सबसे गरीब जिलों में लागू होगी।

निम्न आय वाले देश के गरीब बेरोजगार रहकर नहीं जी सकते। भारत के अधिकतर गरीब कामकाजी गरीब हैं। अधिकांश निर्धन परिवार या तो दिहाड़ी वाला है, अथवा वे स्वरोजगार में लगे हैं।निम्न आय वाले देश के गरीब बेरोजगार रहकर नहीं जी सकते। भारत के अधिकतर गरीब कामकाजी गरीब हैं। अधिकांश निर्धन परिवार या तो दिहाड़ी वाला है, अथवा वे स्वरोजगार में लगे हैं। नियमित रोजगार वाले लोगों के गरीब होने की सम्भावना कम ही होती है। गरीबों को साल में 100 दिनों का नियमित रोजगार देकर रोजगार गारण्टी अधिनियम निर्धनता-आधार को समाप्त करना सुनिश्चित करेगा। 60 रुपए प्रतिदिन के जनसंख्या आधारित औसत न्यूनतम मजदूरी के आधार पर, 100 दिनों के रोजगार से गरीब परिवारों की वार्षिक आय में रु. 6,000 की वृद्धि हो जाएगी। इससे भारत की दो-तिहाई आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर ले आया जा सकेगा।इससे राष्ट्रीय कोष पर क्या लागत आएगी? द्रेज (2004) का अनुमान है कि 2004 के मूल्यों के आधार पर इस कार्यक्रम को चरणबद्ध रूप से लागू करने पर पहले वर्ष (2005) में इस पर आने वाली कुल लागत सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत होगी जो आरम्भिक चरण के अन्तिम वर्ष (2008) में बढ़कर 1 प्रतिशत हो जाएगी। इसके बाद यह अनुपात कम होने लगेगा, क्योंकि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की संख्या कम होने लगेगी।

यह कार्यक्रम तथा उसकी लागत महाराष्ट्र में 20 सालों तक सफलतापूर्वक क्रियान्वित किए गए ऐसे ही एक कार्यक्रम पर आधारित है। लेकिन बाद के इस आकलन में श्रम-सामग्री का 60:40 के अनुपात की कल्पना की गई है। महाराष्ट्र में यह अनुपात काफी कम है और इकाई लागत अधिक श्रम-सघनता के साथ कम हो सकती है।

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