1. गणेशशंकर विद्यार्थी की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होना चाहिए ?
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इसमें अपने-अपने धर्म को अपने ढंग से मनाने की पूरी स्वतंत्रता है। उसके अनुसार शंख, घंटा बजाना, ज़ोर-ज़ोर से नमाज़ पढ़ना ही केवल धर्म नहीं है। शुद्ध आचरण और सदाचार धर्म के लक्षण हैं।
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लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना शुद्ध आचरण और मान्यता से परिपूर्ण होनी चाहिए। धर्म और इमान मन का सौदा हो तथा ईश्वर और आत्मा के बीच संबंध स्थापित करने का साधन होना चाहिए। यह आत्मा को परिष्कृत करने तथा उसे उच्च स्तर प्रदान करने में सहायक होना चाहिए। धर्म को मानवता एवं कल्याणकारी भावना निहित होना चाहिए। इसी प्रकार धर्म में टकराहट के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए तथा यह मनुष्यता के प्रसार का सुगम साधन होना चाहिए।
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