Hindi, asked by seemaismit, 8 months ago

1.कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?
2. फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि कौन-कौन-सा प्रयास
3. कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए क्या करना चाहता है?
कविता से आगे
1. वसंत को ऋतुराज क्यों कहा जाता है? आपस में चर्चा कीजिए।
2वसंत ऋतु में आनेवाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए औ
किसी एक त्योहार पर निबंध लिखिए।​

Answers

Answered by premalatwal241979
32

Answer:

1 =कवि को ऐसा विश्वास इसलिए है क्योंकि अभी उसके मन में नया जोश व उमंग है। अभी उसे काफ़ी नवीन कार्य करने है। वह युवा पीढ़ी को आलस्य की दशा से उबारना चाहते हैं।

2 फूलों को अनंत तक विकसित करने के लिए कवि उन्हें कलियों की स्थिति से निकालकर खिले फूल बनाना चाहता है। कवि का मानना है कि उसके जीवन में वसंत आया हुआ है। इसलिए वह कलियों को हाथों के वासंती स्पर्श से खिला देगा। वह फूलों की आँखों से आलस्य हटाकर उन्हें चुस्त व जागरूक करना चाहता है।

3 कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए उन पर अपना हाथ फेरकर उन्हें जगाना चाहता है। वह उनको चुस्त, प्राणवान, आभावान व पुष्पित करना चाहता है।

अतः कवि नींद में पड़े युवकों को प्रेरित करके उनमें नए उत्कर्ष के स्वप्न जगह देगा, उनका आलस्य दूर भगा देगा तथा उनमें नये उत्साह का संचार करना चाहता है।

4 वसंत को ऋतुराज कहा जाता है क्योंकि यह सभी ऋतुओं का राजा है। इस ऋतु में प्रकृति पूरे यौवन होती है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्व जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं। सरसों के पीले फूल ऋतुराज के आगमन की घोषणा करते हैं। खेतों में फूली हुई सरसों, पवन के झोंकों से हिलती, ऐसी दिखाई देती है, मानो, सामने सोने का सागर लहरा रहा हो। कोयल पंचम स्वर में गाती है और सभी को कुहू-कुहू की आवाज़ से मंत्रमुग्ध करती है। इस ऋतु में उसकी छठा देखते ही बनती है। इस ऋतु में कई प्रमुख त्यौहार मनाए जाते हैं, जैसे – वसंत पंचमी, महा शिवरात्रि, होली आदि।

5

वसंत ऋतु में कई त्यौहार मनाए जाते है, जैसे – वसंत-पंचमी, महा शिवरात्रि, होली आदि।

होली

हमारा देश भारत विश्व का अकेला एवं ऐसा अनूठा देश है, जहँ पूरे साल कोर्इ न कोर्इ त्योहार मनाया जाता है। रंगों का त्योहार होली हिंदुओं का प्रसि़द्ध त्योहार है, जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

यह त्योहार रंग एवं उमंग का अनुपम त्योहार है जब वसंत अपने पूरे यौवन पर होता है। सर्दी को विदा देने और ग्रीष्म का स्वागत करने के लिए इसे मनाया जाता है। संस्कृत साहित्य में इस त्योहार को ‘मदनोत्सव’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

होली के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को अग्नि में जलाने के प्रयास में उसकी बुआ ‘होलिका’ अग्नि में जलकर स्वाहा हो गर्इ थी। इसी घटना को याद कर प्रतिवर्ष होलिका दहन किया जाता है। दूसरे दिन फाग खेला जाता है। इस दिन छोटे-बड़े, अमीर-गरीब आदि का भेदभाव मिट जाता है। सब एक दूसरे पर रंग फेंकते हैं, गुलाल लगाते हैं और गले मिलते हैं। चारों ओर आनंद, मस्ती और उल्लास का समाँ बँध जाता है। ढोल पर थिरकते, मजीरों की ताल पर झूमते, नाचते-गाते लोग आपसी भेदभाव भुलाकर अपने शत्रु को भी गले लगा लेते हैं। परन्तु कुछ लोग अशोभनीय व्यवहार कर इस त्योहार की पवित्रता को नष्ट कर देते हैं।

हमारा कर्तव्य है कि हम होली का त्योहार उसके आदर्शो के अनुरूप मनाएँ तथा आपसी वैमनस्य, वैर-भाव, घृणा आदि को जलाकर एक-दूसरे पर गुलाल लगाकर आपस में प्रेम, एकता और सद्भाव बढ़ाने का प्रयास करें।

“होली के अवसर पर आओ एक दूजे पर गुलाल लगाएँ

अपने सब भेदभाव भूलाकर, प्रेम और सद्भाव बढाएँ”

Answered by aayushi4255
2

1. कवि को ऐसा विश्वास इसलिए है क्योंकि अभी उसके मन में नया जोश व उमंग है। अभी उसे काफ़ी नवीन कार्य करने है|

2. फूलों को विकसित करने के लिए कवि उन कोमल कलियों को जो इस संसार से अनभिज्ञ हैं और सुप्त अवस्था में पड़ी हुई हैं, अपने कोमल स्पर्श से जागृत करने का प्रयास करता है ताकि वो निंद्रावस्था से जागकर एक मनोहारी सुबह के दर्शन कर सके।

3. कवि पुष्पों की तंद्रा और आलस्य दूर हटाने के लिए उन पर अपना हाथ फेरकर उन्हें जगाना चाहता है। वह उनको चुस्त, प्राणवान, आभावान व पुष्पित करना चाहता है। अतः कवि नींद में पड़े युवकों को प्रेरित करके उनमें नए उत्कर्ष के स्वप्न जगह देगा, उनका आलस्य दूर भगा देगा तथा उनमें नये उत्साह का संचार करना चाहता है।

1.वसंत को ऋतुराज कहा जाता है क्योंकि यह सभी ऋतुओं का राजा है। इस ऋतु में प्रकृति पूरे यौवन होती है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है।

2. वसंत पंचमी सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि व होली जैसे प्रमुख त्योहारों का आगमन इसी ऋतु में होता है।

होली :

हमारे देश में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने मैं प्रत्येक भारतीय अपना गौरव समझता है। एक ओर तो आनंद और हर्ष की वर्षा होती है, दूसरी ओर प्रेम व स्नेह की सरिता उमड़ पड़ती है। यह शुभ पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुंदर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है ।

होली का त्योहार वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर आता है। मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती। चारों ओर प्रकृति कै रूप और सौंदर्य के दृश्य दृष्टिगत होते हैं। पुष्पवाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन-मयूर नृत्य कर उठता है। आम के झुरमुट से कोयल की ‘कुहू-कुहू’ सुनकर तो हदय भी झंकृत हो उठता है। ऋतुराज वसंत का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है। सब लोग घरों से बाहर जाकर रंग-गुलाल खेलते हैं और आनंद मनाते हैं।

होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस उत्सव का आधार हिरण्यकश्यप नामक दानव राजा और उसके ईश्वरभक्त पुत्र प्रल्हाद की कथा है। कहते हैं कि राक्षस राजा बड़ा अत्याचारी था और स्वयं को भगवान मानकर प्रजा से अपनी पूजा करवाता था; किंतु उसी का पुत्र प्रल्हाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि मरा पुत्र भी मेरा नाम जपे किंतु वह इसके विपरीत उस ईश्वर का नाम ही जपता था। उसने अपने पुत्र को मरवा डालने के बहुत से यत्न किए, पर असफलता ही मिली। एक बार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस कुकृत्य में अपने भाई का साथ देने का प्रयास किया। उसे किसी देवता से वरदान में एक ऐसा वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढ़कर उस आग नहीं लग सकती थी। एक दिन होलिका प्रल्हाद को गोदी में लेकर चिता में बैठ गई। किंतु भगवान की इच्छा कुछ और ही थी, किसी प्रकार वह कपड़ा उड़कर प्रल्हाद पर जा पड़ा। फलत: होलिका तो भस्म हो गई और प्रल्हाद बच गया। बुराई करने वाले की उसका फल मिल गया था। इसी शिक्षा को दोहराने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।

इस दिन खूब रंग खेला जाता है। आपस में नर-नारी, युवा-वृद्ध गुलाल से एक-दूसरे के मुख को लाल करके हँसी-ठट्ठा करते हैं। ग्रामीण लोग नाच-गाकर इस उल्लास- भरे त्योहार को मनाते हैं । कृष्ण-गोपियों की रास-लीला भी होती है। धुलेंडी के बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहनकर लोग अपने मित्रगणों से मिलते हैं. एक-दूसरे को मिठाई आदि खिलाते हैं और अपने स्नेह-संबंधों की पुनर्जीवित करते हैं।

होली के शुभ अवसर पर जैन धर्म के लोग भी आठ दिन तक सिद्धचक्र की पूजा करते हैं, यह ‘अष्टाहिका’ पर्व कहलाता है। ऐसे कामों से इस पर्व की पवित्रता का परिचय मिलता है। कुछ लोग इस शुभ पर्व को भी अपने कुकर्मो से गंदा बना देते हैं। कुछ लोग इस दिन रंग के स्थान पर कीचड़ आदि गंदी वस्तुओं को एक-दूसरे पर फेंकते हैं अथवा पक्के रंगों या तारकोल से एक-दूसरे को पोतते हैं जिसके फलस्वरूप झगड़े भी हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन भाँग, मदिरा आदि नशे की वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं जिनके परिणाम कभी भी अच्छे नहीं हो सकते। ऐसे शुभ पर्व को इन बातों से अपवित्र करना मानव धर्म नहीं है।

होलिकोत्सव तो हर प्राणी को स्नेह का पाठ सिखाता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस कारण सब उत्सवों में यदि इसे ‘उत्सवों की रानी’ कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।

Similar questions