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मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
छाँडि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई।
संतन ढिंग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोई।
अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेल बोई।
अब तो बेल फैल गई, आनंद फल होई।
भगति देखि राजी हुई, जगति देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरिधर, तारो अब मोही।।
-मीराबाईइसका अर्थ
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Explanation:
शब्दार्थ :- कानि =मर्यादा, लोकलाज। अंसुवन जल = अश्रुरूपी जल से। आणद =आनन्दमय। फल =परिणाम। राजी =खुश। रोई =दुखी हुई।
श्रेणियाँ: कविताकृष्ण
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