Hindi, asked by bantisondhiya, 8 months ago


1. मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा पर टिप्पणी लिखिए।​

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Answered by NIKHILRAWAT64
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Answer:

महात्मा गांधी ने मैथिलीशरण गुप्त को, राष्ट्र-कवि, की उपाधि से सम्मानित किया था और वे सचमुच राष्ट्र कवि ही थे. उन्होंने स्वतंत्रता-पूर्व अपने समय की राष्ट्रीय आवश्यकताओं को समझकर अपने काव्य में उन्हें अभिव्यक्त किया. तभी तो वे राष्ट्र के “दद्दा” बन गए, ठीक ऐसे ही जैसे महात्मा गांधी को “बापू” कहा गया. महात्मा गांधी एक कर्म-योगी थे. गांधी के कर्म-योग को मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी काव्य-प्रतिभा से, कविता-योग, कर दिया.

गुप्त जी में सरस अभिव्यक्ति की क्षमता तो थी ही और कविता के लिए वे इसे एक आवश्यक तत्व भी स्वीकार करते थे, किंतु, “कला के लिए कला” के समर्थक वे कभी नहीं रहे. वास्तविक कला कभी उद्देश्यहीन नहीं हो सकती. बेशक कला मनोरंजन करती है और उसमें अभिव्यक्ति का कौशल भी देखा जा सकता है, लेकिन वह कला जो हमारी मार्ग-दर्शक न बन सके, हमें रास्ता न दिखा सके, हमें हमारे मूल्यों के प्रति सचेत न कर सके – यह निरर्थक है. गुप्त जी कहते हैं –

केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए

उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए .

साहित्य केवल समाज का दर्पण ही नहीं होता जो समाज की छबि को ज्यों का त्यों सामने रख दे. यह अपने आईने में समाज की कमियों और बुराइयों को दिखाता तो ज़रूर है, किंतु वह कोरा कैमरा नहीं है. यह उन कमियों को कैसे दूर किया जाए, सुधार हेतु किस दिशा में उन्हें मोड़ा जाए, इसकी राह और उपाय भी बताता है. कम से कम मूल्यों की दिशा में हमें सोचने के लिए प्रेरित करता है –

हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी

आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी.

वस्तुतः उस समय का पूरा बौद्धिक परिवेश ही इस सुधारवादी दृष्टि से आवेशित था. भारत-भारती की रचना में कवि ने हाली के मुसद्दसों (नज़्म की एक क़िस्म –छः मिसरों का एक बंद) से लाभ उठाया. हाली का मद्दो-जजे-इस्लाम मुसलमानो के नव-जागरण का गीत-काव्य है और वही भारत-भारती का प्रेरक ग्रंथ बना. उसकी रचना पद्धति और ऐतिहासिक टिप्पणियों को मैथिलीशरण गुप्त ने अपने सम्मुख रखा. हाली की यह उक्ति –

कल कौन थे, आज क्या हो गए हो तुम

अभी जागते थे, अभी सो गए हो तुम .

मैथिलीशरण गुप्त को जगाने के काम आई और उन्होंने अपने काव्य से, विशेषकर भारत- भारती से, पूरे राष्ट को उसकी रूढिगत निद्रा (डॉगमेटिक स्लम्बर) से झकझोर दिया.

कहा जा सकता है कि गुप्त जी एक आदर्शवादी कवि थे. कितु अपने आदर्शों की प्रस्तुति में वे की ऊंची उड़ान भरने वाले स्वप्न-जीवी नहीं थे. वे अपने आदर्शों को वर्तमान के कठोर संदर्भ में निरंतर परखते चलते थे. उन्होंने ठोस वास्तविकता का दामन कभी नहीं छोड़ा. दोषपूर्ण वास्तविक स्थितियों से वे सदैव पूरी तरह सजग रहे. सम्प्रदाय और उससे उत्पन्न विद्वेष, नारी की दयनीय स्थिति और छुआछूत आदि, कुछ ऐसी ही सामाजिक विकृतियाँ थीं जिन्हें वे कभी झुठला नहीं सके. इन स्थितियोँ का उन्होंने अपने काव्य में न केवल डटकर विरोध किया, बल्कि उनके ऊपर उठने के लिए सामान्य जन को प्रेरित भी किया. अपने आदर्शों के चलते उन्होंने अपनी ज़मीन कभी नहीं छोड़ी उनका

आदर्श ही यह था कि किसी भी तरह हालात बदलने चाहिए और यह तभी सम्भव है जब हम रूढियों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्रीय मूल्यों से ऊर्जा प्राप्त करें.

गुप्त जी हिंदी साहित्य में गांधी युग के उद्गाता माने जाते हैं. उनके काव्य पर गांधी जी का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित है. वे एक ऐसे कवि थे जिसने भारतीय मूल्यों को पूरी तरह आत्मसात कर लिया था. गीता का लोकसंग्र्ह का आदर्श उनका प्रेरणा स्रोत था और गांधी से उन्होंने राष्ट्रप्रेम के लिए उत्सर्ग की भावना पाई थी. समाज और राष्ट्रसेवा उनका अभीष्ट था. उन्होंने अपने ग्रंथों में अछूत, भूमिहीन, अबला और दरिद्र की पीड़ा के प्रति अपनी सहृदयता और सहानुभूति अभिव्यक्त की है और यह कामना की है कि सभी को सम्मान और आदर मिले. छूत-अछूत के भेद को उन्होंने नितांत अमानुषिक प्रवृत्ति माना.

कोई वजह नहीं है कि मनुष्य अपनी इन राक्षसी प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर विजय न प्राप्त कर सके. राक्षस तक सत्प्रेरणा से जब उच्चतर पद पा सकते हैं तो मनुष्य का विवेक तो उसे अपनी अधम प्रवृत्तियों को छोड़ने के लिए प्रेरित कर ही सकता है. इसका एक अच्छा उदाहरण हमें गुप्तजी के हिडम्बा के चरित्र में देखने को मिलता है. प्रणय-कामी हिडम्बा भीम से कहती है –

होकर भी राक्षसी मैं, अंत में तो नारी हूं

जन्म से मैं जो भी रहूँ जाति से तुम्हारी हूँ

Answered by dackpower
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मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा

Explanation:

मैथिली शरण गुप्त (3 अगस्त 1886 - 12 दिसंबर 1964) सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक हिंदी कवियों में से एक थे। उन्हें खड़ी बोली (सादी बोली) कविता के अग्रदूतों में से एक माना जाता है और खारी बोलियों की बोली में लिखा गया है, उस समय जब अधिकांश हिंदी कवि ब्रजभाषा बोली के उपयोग के पक्षधर थे। वह पद्म भूषण के तीसरे सबसे बड़े (तब दूसरे सर्वोच्च) भारतीय नागरिक सम्मान के प्राप्तकर्ता थे। उनकी पुस्तक भारत-भारती (१ ९ १२) के लिए, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान व्यापक रूप से उद्धृत, उन्हें महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रकवि की उपाधि दी गई।

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दृश्य काव्य , श्रव्य काव्य में अन्तर

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