(1) मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों, तू जसुमति कब जायो।।
कहा करौं इहि रिस के मारें, खेलन हाँ नहिं जात ।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात।।
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसकात ।।
तू मोही को मारन सीखी, दाउहिं कबहुँ न खीझै ।
मोहन मुख रिस - की ये बातें, जसुमति सुनि-सुनि रीझै ।।
सुनहु कान, बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।
सूर स्याम मोहि गोधन की सौं, हौं माता तू पूत ।।
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(1) मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों, तू जसुमति कब जायो।।
कहा करौं इहि रिस के मारें, खेलन हाँ नहिं जात ।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरो तात।।
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत, हँसत सबै मुसकात ।।
तू मोही को मारन सीखी, दाउहिं कबहुँ न खीझै ।
मोहन मुख रिस - की ये बातें, जसुमति सुनि-सुनि रीझै ।।
सुनहु कान, बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।
सूर स्याम मोहि गोधन की सौं, हौं माता तू पूत ।।
भावार्थ:
हे माता (यशोदा), मुझे बलराम भैया बहुत चिढ़ाते हैं। मुझे वह मोल खरीदा हुआ बताते हैं, और कहते हैं कि मुझे तुमने जन्म नहीं दिया है। इस बात को सुनकर मैं क्रोध के मारे खेलने भी नहीं जाता। वह बार-बार पूछते हैं कि मेरे माता-पिता कौन हैं। ये नन्द जी और यशोदा दोनों गोरे वर्ण के हैं। तुम काले शरीर वाले कहाँ से आ गए। सब ग्वाले चुटकी देकर नाचते, हँसते और मुस्कराते हैं। तुम हमेशा मुझे ही पीटना जानती हो, बलराम भैया को कभी नहीं डाँटती हो। बालक श्रीकृष्ण के मुख से क्रोधपूर्ण बातें सुनकर यशोदा मन-ही-मन में खुश होती हैं। वह कहती हैं। कि कृष्ण सुनो, बलराम तो चुगली करने वाला, जन्म से ही धूर्त है। सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा कृष्ण से कहती हैं कि मुझे गायों के धन की सौगन्ध है कि मैं ही तुम्हारी माता हूँ और तुम मेरे ही पुत्र हो।