1. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : 7
(क) भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुक्ख अपार ।
मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरोण सार ।
कबीर सुमिरण सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल॥
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भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुक्ख अपार ।
मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरोण सार ।
कबीर सुमिरण सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंत सब सोधिया, दूजा देखौं काल।।
सप्रसंग व्याख्या : यह दोहे कबीरदास द्वारा रचित किए गए हैं। कबीरदास इन दोनों के माध्यम से परमात्मा की भक्ति की महत्व को स्पष्ट करते हैं।
कबीरदास कहते हैं कि प्रभु की भक्ति करना और निरंतर उनके नाम का जप करना यही जीवन का सार है। बाकी संसार की सारी बातें का अपार दुखों का कारण है। इसलिए अपने मन, वचन और कर्म से निरंतर प्रभु के नाम का स्मरण करते रहना चाहिए, जो प्रभु के नाम का निरंतर स्मरण करता है, वह संसार के सभी दुःखों और जंजालों से मुक्ति पा लेता है। उन्होंने आदि और अंत दोनो को भली-भाँति परख लिया है, ये जान लिया है, कि परमात्मा की भक्ति ही सच्चा मार्ग है, जिस पर चलकर ही मनुष्य पार पा सकता है।
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