Hindi, asked by AliZuhayr, 5 hours ago

1) निम्नलिखित पद्यांश और गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए। 1) पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजू पहार। ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार।।
1) उपर्युक्त दोहे का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
ii) कबीर किस स्थिति में पहाड़ को पूजने को तैयार है?
iii) 'ताते यह चाकी भली - का व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
iv) उपर्युक्त दोहे के आधार पर कबीर की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।।​

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Answered by abhaysingh27052019
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Answered by sj9628897892
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1.इस दोहे द्वारा कवि ने मूर्ति-पूजा जैसे बाह्य आडंबर का विरोध किया है। कबीर मूर्ति पूजा के स्थान पर घर की चक्की को पूजने कहते है जिससे अन्न पीसकर खाते है।

3.शप्रस्तुत पंक्ति में कबीरदास ने मुसलमानों के धार्मिक आडंबर पर व्यंग्य किया है। एक मौलवी कंकड़-पत्थर जोड़कर मस्जिद बना लेता है और रोज़ सुबह उस पर चढ़कर ज़ोर-ज़ोर से बाँग (अजान) देकर अपने ईश्वर को पुकारता है जैसे कि वह बहरा हो। कबीरदास शांत मन से भक्ति करने के लिए कहते हैंl

2.पाथर पूजे हरि मिले , तो मैं पूजू पहाड़ . कबीर कहते हैं कि यदि पत्थर कि मूर्ती कि पूजा करने से भगवान् मिल जाते तो मैं पहाड़ कि पूजा कर लेता हूँ . उसकी जगह कोई घर की चक्की की पूजा कोई नहीं करता , जिसमे अन्न पीस कर लोग अपना पेट भरते हैं .

4.कबीर की भक्ति सहज है। वे ऐसे मंदिर के पुजारी है जिसकी फर्ष हरी हरी घास जिस की दीवारें दसों दिशाएं हैं जिसकी छत नीले आसमान की छतरी है या साधना स्थान सभी मनुष्य के लिए खुला है। कबीर की भक्ति में एकग्र मन, सतत साधना, मानसिक पूजा अर्चना, मानसिक जाप और सत्संगति को विशेष महत्व दिया गया है।

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