1 रैदास जी ने ईश्वर की तुलना चंदन,बादल और मोती से की है, आप ईथर की तुलना कित्यसे करना चाहेंगी?और क्यों?
2 "मीरा के पद "का भाव अपने शब्दों<br />में लिखाए?
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- महाकवि रैदास ईश्वर-भक्ति में आडंबर को तरजीह नहीं देते
- वे निर्गुण भक्ति की सार्थकता सिद्ध करते हैं।
- उनकी दृष्टि में ईश्वर की पूजा-अर्चना के लिए चढाए, जाने वाले फल फल एवं जल निरर्थक हैं।
- इनका कोई सही प्रयोजन नहीं।
- ये जूठे एवं गँदले हैं। इसीलिए रैदासजी कर्मकांडी आडंबर से मुक्त निर्मल मन से अन्तर्मन में ही ईश्वर की आराधना करना चाहते हैं।
- वे अपने हृदय और मस्तिष्क से ईश्वर के सहज और स्वच्छ छवि को ही प्रणम्य करते हैं।
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मैं तो ईश्वर की तुलना दयालु, दानी, पाप कुँज को हारी अनाथ नाथ, ब्रह्म, स्वामी, माँ - बाप, गुरु और मित्र के समान करता हूँ।
क्योंकि ईश्वर दीनों पर दया करनेवाला है तो मैं दीन हूँ। ईश्वर दानी है तो मैं भिखमंगा हूँ। ईश्वर पाप कुँजी हारी है तो मैं उजागर पापी हूँ। ईश्वर अनाथों का नाथ है तो मैं अनाथ हूँ। ईश्वर ब्रह्म है तो मैं जीव हूँ। ईश्वर स्वामी है तो मैं सेवक हूँ। इतना ही क्यों भगवान (ईश्वर) माँ-बाप, गुरु और मित्र सब प्रकार से
मेरा हित करने वाला है।
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