1 .रस से आप क्या समझते हैं??
2.रस के अंग बताइए
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Answers
रस :-
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द'। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है।
रस के अंग :-
- श्रृंगार
- हास्य
- करूण
- वीर
- रौद्र
- भयानक
- वीभत्स
- अद्भुत
- शान्त
इनके अतिरिक्त एक अन्य रस वत्सल भी माना जाता है जिसका स्थायीभाव 'वात्सल्य' है।
हिंदी में थोड़ा फिसड्डी हूं...umeed hai ki galat hoga.
Answer:
1) काव्य को पढने से जिस आनंद की अनुभूति होती है अर्थात जिस अनिवर्चनीय भाव का संचार ह्रदय में होता है, उसी आनंद को रस कहा जाता है | रस का विवेचन सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने ग्रन्थ नाट्य शास्त्र में किया था, इसे रस कहते हैं।
२) रस के 4 अंग माने गये हैं , स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव
स्थायी भाव – स्थायी भाव का अर्थ होता है प्रधान भाव, स्थायी भाव ही रस का आधार है | एक रस के मूल में एक रस विद्यमान रहता है |
विभाव – जो पदार्थ, व्यक्ति परिस्थिति व्यक्ति के ह्रदय में भावोद्रेक उत्पन्न करता है, वह विभाव कहलाता है | विभाव दो प्रकार के होते हैं – उद्दीपन विभाव और आलंबन विभाव
अनुभाव – मनोभावों को व्यक्त करने वाले शारीरिक विकार अनुभाव कहलाते हैं, ये भाव सात्विक, मानसिक और कायिक होते हैं |
संचारी भाव/ व्याभिचारी भाव – मन में संचरण करने वाले भाव संचारी भाव कहलाते हैं, ये भाव पानी के बुलबुलों के सामान उठते और विलीन हो जाने वाले भाव होते हैं |