Hindi, asked by rarmy4858, 1 day ago

(1) ऊथी, तुम ही अति बहभागी। अपरस रहत सनेह तगा , नाहिन मन अनुरागी पुरनि पात रहत जल भीतर, ता रम देह न दागी ज्यों जल माह तेल की गागरि, बँटनताको लागी प्रीति नदी में पार्डन बोल्यो, दृष्टि न रूप परामी सूरदास' अबला हम भारी, गुर चाँटी ज्वी पाणी Hindi arth ​

Answers

Answered by Ajay8782
2

गोपियाँ उद्धव से कहती हैं की तुम बड़े ही भागी हो, भाग्यशाली हो क्योंकि तुम प्रेम के बंधन से दूर हो. तुम प्रेम के वन्धन से मुक्त हो. जैसे कमल के फूल की पत्तियाँ जल में रहकर भी जल से ऊपर ही रहती है, जल में गलती मिलती नहीं हैं. उस पर जल की एक बूंद भी नहीं ठहरती है, जल का कोई दाग उस पर नहीं लगता है. तुम तो ऐसे ही हो जैसे तेल की मटकी को पानी में डुबो देने पर भी एक बूंद भी उसके ऊपर नहीं ठहरती है. तुमने प्रेम की नदी में अभी तक पांव नहीं रखा है. तुम्हारी द्रष्टि किसी को देख करके भी उसमे उलझी नहीं है, किसी से प्रेम स्थापित नहीं हुआ है. लेकिन हम अबलाएँ तो भोली भाली हैं हम तो जैसे गुड़ पर मक्खी बैठ कर चिपक जाती है (चिपक कर वह प्राण त्याग देती है ) वैसे स्वभाव की हैं. इस पद में श्रृंगार और वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है. इस पद्य में विरह का चित्रण भी प्राप्त होता है.

Similar questions