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ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।।
अपरस रहत सनेह तगा तै, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यों जल माहें तेल की गागरि, बूंद न ताको लागी।
प्रीति नदी में पाउँ न बोस्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी।।
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Answers
यह पंक्तियाँ ऊधौ,तुम हो अति बड़भागी सूरदास के पद द्वारा ली गई है |
काव्य सौंदर्य : पंक्तियों में गोपियों का श्री कृष्ण जी से वियोग होने का मार्मिक वर्णन किया गया है |
प्रीति नदी में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है |
उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है |
पुरइनि पात में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है |
भावर्थ : ऊधव बड़े ही भाग्यशाली हैं क्योंकि उन्हें कृष्ण के इतने निकट रहने के बाद भी तुम कृष्ण से मोह नहीं कर पाए | तुम कृष्ण के स्नेह से दूर हो | जिस प्रकार जल में कमल का पत्तापानी में रहता पर , वह पत्ता पानी में भीगता नहीं है | जैसे जल में तरल की गागरी को पानी नहीं लगता है तुम्हारे पास प्रेम नाम की कोई चीज़ नहीं है | तुमने तो प्रेम की नगरी में पांव में नहीं डाला| कृष्ण तो एक पराग जिन्हें देखकर भवरें भी उनके प्रेम में पड़ जाते है | हम तो गोपियाँ है , वह अबला है ,हमारी हालत गुड़ की चींटियों की तरह है जो गुड़ में सड़ जाती है , अब हम कृष्ण से अलग नहीं हो सकते है |