1. विनय
मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज को पच्छी, फिरि जहाज पै आवै।
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव कौं ध्यावै।
परम गंग को छाँड़ि पियासौ, दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील फल भावै।
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै।।
Meaning of this para
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Answer:
भावार्थ
Explanation:
यहां भक्त की भगवान् के प्रति अनन्यता की ऊंची अवस्था दिखाई गई है। जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है। उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्माही है , अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति मिलने की नहीं। प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है। कमल-रसास्वादी भ्रमर भला करील का कड़वा फल चखेगा ?कामधेनु छोड़कर बकरी को कौन मूर्ख दुहेगा ?
Answer:
भावार्थ :- यहां भक्त की भगवान् के प्रति अनन्यता की ऊंची अवस्था दिखाई गई है। जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है। उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्माही है , अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति मिलने की नहीं। प्रभु को छोड़कर जो इधर-उधर सुख खोजता है, वह मूढ़ है। कमल-रसास्वादी भ्रमर भला करील का कड़वा फल चखेगा ?कामधेनु छोड़कर बकरी को कौन मूर्ख दुहेगा ?
शब्दार्थ :- अनत =अन्यत्र। सचु =सुख, शान्ति। कमलनैन = श्रीकृष्ण। दुर्मति= मूर्ख खनावै = खोदता है। करील -फल = टेंट। छेरी =बकरी।