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चारों ओर गहरे बादल छाए हुए थे । अंधेरा होता जा रहा था। मुसलाधार बारिश भी हो
रही थी। तन्मय को किसी आवश्यक कार्य से कहीं जाना था। पर उसके पांव में जूते तक न
थे । चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ था। उसके कपड़े भी भीग गए थे। थोड़ी देर में बारिश रुकी
और धूप खिल उठी। पर अभी भी दलदल और कीचड़ से वह परेशान था। उसके मन में हीन
भावना जागृत हो गई। वह ईश्वर से शिकायत करके मंदिर की ओर चल पड़ा। वह बड़बड़ाता
हुआ सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, “ईश्वर तुमने न मुझे जूते दिए और न ही अच्छे कपड़े। अभी वह
कुछ सीढ़ी ही चढ़ा था कि उसे सीढ़ियों पर एक नवयुवक बैठा दिखाई दिया जिसके पाँव ही
नथे। वह लौट पड़ा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। मन ही मन वह भगवान को धन्यवाद
ज्ञापित करने लगा और सोचने लगा कि उसने बहुत कुछ दिया है वह उसका ऋणी है।
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THIS IS THE ANSWER TO YOUR QUESTION
There were deep clouds all around. It was getting dark. Rain too
Was living Tanmay had to go somewhere with a necessary task. But not even the shoes in his feet
Were . There was mud everywhere. His clothes were also wet. Rain stopped for a while
And the sun shone. But he was still troubled by swamps and mud. Inferior in his mind
The feeling was awakened. After complaining to God, he walked towards the temple. He grumbles
Ascended the stairs, "God, you neither gave me shoes nor nice clothes. Now he
He had climbed some ladder that he saw a young man sitting on the stairs with his feet
Nath. He returned. He realizes his mistake. Thank you god thank you
He started thinking and thought that he has given a lot, he is indebted to him.