10. खरपतवार नियंत्रण क्यों आवश्यक है?
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बेवर (मैनपुरी): किसान अपनी लागत के अनुरूप भरपूर फसल प्राप्त कर सके इसके लिए खरपतवार नियंत्रण एक अति आवश्यक क्रिया है। ... बेवर : खरपतवार फसल के लिए उपलब्ध पोषक तत्व,जल,सूर्य का प्रकाश एवं वायु का प्रयोग करते हैं। जिससे खरपतवार व फसल के बीच प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाती है।
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वर्गीकरणसंपादित करें
प्राकृतिक गुण के आधार पर विभिन्न फसलों में उगने वाले खरपतवारों को मुख्यतः तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
(१) घास
(२) सेज़ (Sedge) एवं
(३) चौड़ी पत्ती वाले खरपत्वार
घास एकबीजपत्रीय पौधा है। इसकी पत्तियां लम्बी, संकरी तथा सामान्यतः शिरा-विन्यास वाली, तना बेलनाकार तथा अग्रशिखा शिश्नच्छद से ढका होना, जड़े सामान्यतः रेशेदार तथा अपस्थानिक ढंग की होती है। सेज वर्गीय खरपतवार भी घास की तरह ही दिखते हैं, परन्तु इनका तना बिना जुड़ा हुआ, ठोस तथा यदा-कदा गोल की अपेक्षा तिकोना होता है। वे खरपतवार जिनकी पत्तियां चौड़ी होती हैं तथा जिनमें जाल-शिरा विन्यास और मूसल जड़ (मूल) प्रणाली पाई जाती है, चौड़ी पत्ती वाले कहलाते हैं। सामान्यतः ये द्विबीजपत्री होते हैं। सभी चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार द्वि-बीजपत्री नहीं होते। उदाहरणार्थ जलकुंभी तथा इर्कोनिया क्रासिपस चौड़ी पत्ती होने पर भी एकबीजपत्रीय ही हैं।
(बरूडी) कांदी) मस्टा
सावंक
झरनिया
बेसक
कनकी
महकुआ
काला भंगरा
फुलवारी
खाकी
छतरी वाला डिल्ला
डिल्ला
डिल्ली
मोथा
दूब घास
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जलकुम्भी
बड़ी दुद्धी
छोटी दुद्धी
पथरचटा (खरपतवार)
हाइड्रिला
लुनिया
मकरा
बलराज
जंगली नील
बंदरा बंदरी
साठी
कटीली चौलाई
चौलाई
(लामडी )
(बोकनो)
(बोकनी)
(मोतन्ग्या)
(काल्यो घास)
(काचरी का बेलडा)
(रासोण)
(दुद्धी)
(खारी छन्जारी)
केना
(दरबोडा)