10 slokes on sajjan in sanskrit
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1. वाच्छा सज्जनसंगमे परगुणे प्रीति र्गुरौ नम्रता
विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिः लोकापवादाग्भयम् ।
भक्तिः शूलिनि शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले
ष्वेते येषु वसन्ति निर्मलगुणाः तेभ्यो नरेभ्यो नमः ॥
अच्छी सोबत की ईच्छा, पराये के गुणों में प्रीति, बडों के प्रति नम्रता, विद्या का व्यसन, स्वपत्नी पर प्रेम, लोकनिंदा का भय, ईश्वर की भक्ति, आत्मदमन की शक्ति, और दृष्टों से दूर रहना – ये निर्मल गुण जिस में हो, उस मानव को नमस्कार ।
2. धृष्टं धृष्टं पुनरपि पुनः चन्दनं चारुगन्धं
छिन्नं छिन्नं पुनरपि पुनः चेक्षुदण्डं रसालम् ।
दग्धं दग्धं पुनरपि पुनः कांचनं ताप्तवर्णम्
प्राणान्तेऽपि प्रकृतिविकृति र्जायते नोत्तमानाम् ॥
बारबार घीसने पर भी चंदन सुगंधित हि रहेता है; बारबार छेदने के बावजुद गन्ना रसमय रहेता है; बारबार अग्नि में जलाने पर सोना अधिक तेजोमय होता है; वैसे हि प्राण जाय फिर भी, उत्तम लोगों के स्वभाव में विकृति नहीं आती ।
3. गुणीनः समीपवर्ती पूज्यो मुद्रण ई-मेल
गुणीनः समीपवर्ती पूज्यो लोकस्य गुणविहीनोऽपि ।
विमलेक्षणप्रसंगात् अंजनाप्नोति काणाक्षि ॥
गुणवान मानव के नज़दीक रहा गुणहीन भी लोगों में पूजा जाता है । कानी स्त्री की एक आँख, दूसरी अच्छी आँख के संसर्ग से अंजन प्राप्त करती है ।
4. मूकः परापवादे मुद्रण ई-मेल
मूकः परापवादे परदारनिरीक्षणेऽन्यन्धः ।
पंगुः परधनहरे स जयति लोकत्रयं पुरुषः ॥
परनिंदा में गूंगा, परस्त्री देखने में अंधा, परधन छीन लेने में पंगु – ऐसा मानव तीनों लोक जीतता है ।
5. वित्ते त्यागः क्षमा शक्तौ दुःखे दैन्यविहीनता ।
निर्दंभता सदाचारे स्वभावोऽयं महात्मनाम् ॥
वित्त हो तब त्याग कर पाना, शक्ति हो तब क्षमा दे पाना, दुःख हो तब लाचारी न करना, और सदाचार में निर्दंभी रहेना – ये महापुरुषों का स्वभाव है ।
6. श्लोकस्तु श्लोकतां याति मुद्रण ई-मेल
श्लोकस्तु श्लोकतां याति यत्र तिष्ठन्ति साधवः ।
लकारो लुप्यते तत्र यत्र तिष्ठन्त्यसाधवः ॥
जहाँ सज्जन होते हैं, वहाँ श्लोक श्लोकता को प्राप्त होता है । लेकिन, दुर्जनों के बीच, श्लोक में से 'ल'कार का लोप होता है (याने कि वह 'शोक' बन जाता है) ।
7. नरिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि मुद्रण ई-मेल
नरिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः ।
अनये बदरिकाकाराः बहिरेव मनोहराः ॥
सज्जन नारियेल जैसे होते हैं (बाहर से कठोर, पर अंदर से मृदु), लेकिन दूसरे तो बोर जैसे होते हैं, जो केवल बाहर से सुंदर दिखते हैं !
8. किमिति निजकलङ्कं नात्मसंस्थं प्रमार्ष्टि ।
भवति विदितमेतत् प्रायशः सज्जनानाम्
परहितनिरतानामदरो नात्मकार्ये ॥
जो चंद्रमा पूरी दुनिया को शुभ्र बनाता है, वह अपने में रहे कलंक को क्यों दूर नहीं करता ? सज्जन तो जानते हैं कि जो दूसरे के हित में डूबे हुए होते हैं, उनको खुद के कार्य में आदर (ध्यान) नहीं होता ।
9. प्रातः द्यूतप्रसंगेन मध्याह्ने मुद्रण ई-मेल
प्रातः द्यूतप्रसंगेन मध्याह्ने स्त्रीप्रसंगतः ।
रात्रौ चोर प्रसंगेन कालो गच्छति धीमताम् ॥
सुबह को द्यूत प्रसंग से (महाभारत पढकर), दोपहर को स्त्री प्रसंग से (रामायण पढकर), (और) रात को चोर प्रसंग से (भागवत पढकर) बुद्धिमान लोगों का समय व्यतीत होता है ।
10.
नीरस्यान्यपि रोचन्ते मुद्रण ई-मेल
नीरस्यान्यपि रोचन्ते कार्पासस्य फलानि मे ।
येषां गुणमयं जन्म परेषां गुह्यगुप्तये ॥
जिसका गुणमय जन्म दूसरे की गुप्त बात ढँकने के लिए है, ऐसे कपास के फल, नीरस होने के बावजुद मुज़े पसंद हैं ।
विद्यायां व्यसनं स्वयोषिति रतिः लोकापवादाग्भयम् ।
भक्तिः शूलिनि शक्तिरात्मदमने संसर्गमुक्तिः खले
ष्वेते येषु वसन्ति निर्मलगुणाः तेभ्यो नरेभ्यो नमः ॥
अच्छी सोबत की ईच्छा, पराये के गुणों में प्रीति, बडों के प्रति नम्रता, विद्या का व्यसन, स्वपत्नी पर प्रेम, लोकनिंदा का भय, ईश्वर की भक्ति, आत्मदमन की शक्ति, और दृष्टों से दूर रहना – ये निर्मल गुण जिस में हो, उस मानव को नमस्कार ।
2. धृष्टं धृष्टं पुनरपि पुनः चन्दनं चारुगन्धं
छिन्नं छिन्नं पुनरपि पुनः चेक्षुदण्डं रसालम् ।
दग्धं दग्धं पुनरपि पुनः कांचनं ताप्तवर्णम्
प्राणान्तेऽपि प्रकृतिविकृति र्जायते नोत्तमानाम् ॥
बारबार घीसने पर भी चंदन सुगंधित हि रहेता है; बारबार छेदने के बावजुद गन्ना रसमय रहेता है; बारबार अग्नि में जलाने पर सोना अधिक तेजोमय होता है; वैसे हि प्राण जाय फिर भी, उत्तम लोगों के स्वभाव में विकृति नहीं आती ।
3. गुणीनः समीपवर्ती पूज्यो मुद्रण ई-मेल
गुणीनः समीपवर्ती पूज्यो लोकस्य गुणविहीनोऽपि ।
विमलेक्षणप्रसंगात् अंजनाप्नोति काणाक्षि ॥
गुणवान मानव के नज़दीक रहा गुणहीन भी लोगों में पूजा जाता है । कानी स्त्री की एक आँख, दूसरी अच्छी आँख के संसर्ग से अंजन प्राप्त करती है ।
4. मूकः परापवादे मुद्रण ई-मेल
मूकः परापवादे परदारनिरीक्षणेऽन्यन्धः ।
पंगुः परधनहरे स जयति लोकत्रयं पुरुषः ॥
परनिंदा में गूंगा, परस्त्री देखने में अंधा, परधन छीन लेने में पंगु – ऐसा मानव तीनों लोक जीतता है ।
5. वित्ते त्यागः क्षमा शक्तौ दुःखे दैन्यविहीनता ।
निर्दंभता सदाचारे स्वभावोऽयं महात्मनाम् ॥
वित्त हो तब त्याग कर पाना, शक्ति हो तब क्षमा दे पाना, दुःख हो तब लाचारी न करना, और सदाचार में निर्दंभी रहेना – ये महापुरुषों का स्वभाव है ।
6. श्लोकस्तु श्लोकतां याति मुद्रण ई-मेल
श्लोकस्तु श्लोकतां याति यत्र तिष्ठन्ति साधवः ।
लकारो लुप्यते तत्र यत्र तिष्ठन्त्यसाधवः ॥
जहाँ सज्जन होते हैं, वहाँ श्लोक श्लोकता को प्राप्त होता है । लेकिन, दुर्जनों के बीच, श्लोक में से 'ल'कार का लोप होता है (याने कि वह 'शोक' बन जाता है) ।
7. नरिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि मुद्रण ई-मेल
नरिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः ।
अनये बदरिकाकाराः बहिरेव मनोहराः ॥
सज्जन नारियेल जैसे होते हैं (बाहर से कठोर, पर अंदर से मृदु), लेकिन दूसरे तो बोर जैसे होते हैं, जो केवल बाहर से सुंदर दिखते हैं !
8. किमिति निजकलङ्कं नात्मसंस्थं प्रमार्ष्टि ।
भवति विदितमेतत् प्रायशः सज्जनानाम्
परहितनिरतानामदरो नात्मकार्ये ॥
जो चंद्रमा पूरी दुनिया को शुभ्र बनाता है, वह अपने में रहे कलंक को क्यों दूर नहीं करता ? सज्जन तो जानते हैं कि जो दूसरे के हित में डूबे हुए होते हैं, उनको खुद के कार्य में आदर (ध्यान) नहीं होता ।
9. प्रातः द्यूतप्रसंगेन मध्याह्ने मुद्रण ई-मेल
प्रातः द्यूतप्रसंगेन मध्याह्ने स्त्रीप्रसंगतः ।
रात्रौ चोर प्रसंगेन कालो गच्छति धीमताम् ॥
सुबह को द्यूत प्रसंग से (महाभारत पढकर), दोपहर को स्त्री प्रसंग से (रामायण पढकर), (और) रात को चोर प्रसंग से (भागवत पढकर) बुद्धिमान लोगों का समय व्यतीत होता है ।
10.
नीरस्यान्यपि रोचन्ते मुद्रण ई-मेल
नीरस्यान्यपि रोचन्ते कार्पासस्य फलानि मे ।
येषां गुणमयं जन्म परेषां गुह्यगुप्तये ॥
जिसका गुणमय जन्म दूसरे की गुप्त बात ढँकने के लिए है, ऐसे कपास के फल, नीरस होने के बावजुद मुज़े पसंद हैं ।
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