Hindi, asked by vabhi5248, 4 hours ago

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दुनिया शायद अभी तक के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है। मौजूदा दौर की महामारी ने हर
किसी के जीवन में हलचल मचा दी है। इस पर महामारी ने जीवन की सहजता को पूरी तरह
बाधित कर दिया है। भारत में इतनी अधिक आबादी है कि इसमें किसी नियम कायदे को पूरी
तरह से अमल में लाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। इसमें महामारी के संक्रमण को रोकने
के मकसद से पूर्णबंदी लागू की गई और इसे कमोबेश कामयाबी के साथ अमल में भी लाया
गया। लेकिन यह सच है कि जिस महामारी से हम जूझ रहे हैं, उससे लड़ने में मुख्य रूप से
हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की ही बड़ी भूमिका है। लेकिन असली चिंता बच्चों और बुजुर्गों
की हो आती है।
इस मामले में ज़्यादातर नागरिकों ने जागरुकता और सहजबोध की वजह से जरूरी सावधानी
बरती है। लेकिन इसके समानान्तर दूसरी कई समस्याएँ खड़ी हुई हैं। मसलन आर्थिक
गतिविधियां जिस बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, उसने बहुत सारे लोगों के सामने संकट और ऊहापोह
की स्थिति पैदा कर दी है। एक तरफ नौकरी और उसकी तनख्वाह पर निर्भर लोगों की लाचारी
यह है कि उनके सामने यह आश्वासन था कि नौकरी से नहीं निकाला जाएगा, वेतन नहीं रोका
जाएगा, वहीं उनके साथ हुआ उल्टा। नौकरी गई, कई जगहों पर तनख्वाह नहीं मिली या कटौती
की गई और किराए के घर तक छोड़ने की नौवत आ गई। इस महामारी का दूसरा असर शिक्षा
जगत पर पड़ा है, उसका तार्किक समाधान कैसे होगा, यह लोगों के लिए समझना मुश्किल हो
रहा है। खासतौर पर स्कूली शिक्षा पूरी तरह से बाधित होती दिख रही है। यों इसमें किए गए
वैकल्पिक इंतज़ामों की वजह से स्कूल भले बंद हों, लेकिन शिक्षा को जारी रखने की कोशिश
की गयी है। स्कूल बंद होने पर बहुत सारे शिक्षकों को वेतन की चिंता प्राथमिक नहीं थी, बच्चों
के भविष्य की चिंता उन्हें सता रही है। हालांकि एक ख़ासी तादाद उन बच्चों की है, जो लैपटॉप
या स्मार्ट फोन के साथ जीते हैं, लेकिन दूसरी ओर बहुत सारे शिक्षक ऐसे भी हैं, जिन्हें कम्प्युटर
चलाना नहीं आता। उन सबके सामने चुनौती है ऑनलाइन कक्षाएँ लेने की। सबने हार नहीं मानी
और तकनीक को खुले दिल से सीखा। इस तरह फिलहाल जो सीमा है, उसमें पढ़ाई-लिखाई को
जारी रखने की पुरी कोशिश की जा रही है। (जनसत्ता से साभार)​

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Answered by jaswanth9363
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