10linrs about swami Vivekkanadha
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स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकत्ता में एक हिन्दू परिवार में हुआ था।स्वामी विवेकानंद जी की माँ ने बचपन में उन्हें बिलेकहकर बुलाया करती थी और बाद में उनका नाम नरेंद्र नाथ रखा गया।स्वामी विवेकानंद जी का जन्म भारत में राष्ट्रिय युवा दिवस को समरपित है।माता भुवनेश्वरी देवी से स्वामी विवेकानंद जी को महाभारत के किस्से सुनना बहुत अच्छा लगता था और बचपन में स्वामी जी को गाड़ी में घूमना बहुत अच्छा लगता था।स्वामी विवेकानंद जी के परिवार ने बहुत गरीवी में जीवन बिताया है मात्र भोजन के लिए उनके परिवार को काफी मेहनत करनी पडती थी। कई बार तो स्वामी विवेकानंद जी कई – कई दिनों तक भूखे रहते थी ताकि उनके परिवार को भोजन मिल सके।
6. स्वामी महाराज जी केवल संत ही नहीं थे बल्कि देशभक्त और मानवता को प्यार करने वाले इंसान थे इसकी मिसाल तब मिली जब 1899 में कलकत्ता में प्लैग की बीमारी फैली हुई थी अस्वस्थ्य होने के कारण भी स्वामी जी ने तन – मन और धन से लोगों की सेवा करके दया की मिसाल पैदा की।
पढ़ाई खत्म करने के बाद भी स्वामी विवेकानंद जी नौकरी की तलाश कर रहे थे कहीं काम न मिलने की वजह से उनका परमत्मा से विश्वास बिल्कुल उठ चूका था।स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंसपर ज्यादा विशवास नहीं करते थे। क्योंकि गुरु रामकृष्ण परमहंस जी स्वामी जी से बात – बात पर प्रश्न पूछते रहते थे।स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही सरल जीवन बिताया करते थे उनकी सादगी की उदाहरन तब मिली जब स्वामी जी 1893 में लन्दन में उन्होंने खुद ही कचोरियाँ बना डाली थी।साल 1893 में स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका में अपने पहले भाषण में भारत की तरफ से धर्म का प्रचार करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने अपने भाषण की शुरूयात ‘ मेरे अमरीकी भाईओं और बहनों ‘ से शुरू की थी । स्वामी विवेकानंद जी के इस भाषण ने सभी का दिल जीत लिया था।
6. स्वामी महाराज जी केवल संत ही नहीं थे बल्कि देशभक्त और मानवता को प्यार करने वाले इंसान थे इसकी मिसाल तब मिली जब 1899 में कलकत्ता में प्लैग की बीमारी फैली हुई थी अस्वस्थ्य होने के कारण भी स्वामी जी ने तन – मन और धन से लोगों की सेवा करके दया की मिसाल पैदा की।
पढ़ाई खत्म करने के बाद भी स्वामी विवेकानंद जी नौकरी की तलाश कर रहे थे कहीं काम न मिलने की वजह से उनका परमत्मा से विश्वास बिल्कुल उठ चूका था।स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंसपर ज्यादा विशवास नहीं करते थे। क्योंकि गुरु रामकृष्ण परमहंस जी स्वामी जी से बात – बात पर प्रश्न पूछते रहते थे।स्वामी विवेकानंद जी बहुत ही सरल जीवन बिताया करते थे उनकी सादगी की उदाहरन तब मिली जब स्वामी जी 1893 में लन्दन में उन्होंने खुद ही कचोरियाँ बना डाली थी।साल 1893 में स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका में अपने पहले भाषण में भारत की तरफ से धर्म का प्रचार करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने अपने भाषण की शुरूयात ‘ मेरे अमरीकी भाईओं और बहनों ‘ से शुरू की थी । स्वामी विवेकानंद जी के इस भाषण ने सभी का दिल जीत लिया था।
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