10muhavare se bani story
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रोहित बात का धनी था। सारे बच्चे उसकी बातों से प्रसन्न रहते थे। परन्तु ऐसे आस्तीनों के साँप की कमी नहीं होती, जो होते तो मित्र हैं परन्तु कार्य शत्रुओं वाला करते हैं। उसके ऐसे ही एक परम नाम के मित्र ने उसे धूल में मिलाने की सोची। उसने एक लड़के की किताब चोरी कर ली और उसका इलाज़ में रोहित पर लगा दिया। जब राम अपनी किताब रोहित से माँगने आया तो, वह हैरान था। उसने किसी की किताबें नहीं चोरी थी। राम उसे आँखें दिखा रहा था। राम ने उसे कहा मित्र मैं तुम्हारी किताब तब चोरी करता जब मैं शहर में होता। मैं तो आज ही अपने नाना के यहाँ से आया हूँ। तुम्हारी किताब कल चोरी हुई है। यदि यकीन न हो तो कहीं से भी पता कर सकते हो। रोहित के अन्य मित्रों ने उसकी बात का समर्थन किया। उसने राम से पूछा कि तुम्हें यह बात जिसने बताई है हो न हो उसी ने तुम्हारी किताब चोरी की है। वह मुझे जानबूझकर इसमें फंसा रहा है। राम को बात समझ में आ गई। रोहित ने अपनी समझदारी से विरोधियों को अँगूठा दिखा दिया था। कोई उसका बाल-बांका भी नहीं कर सका।
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