11. हम घरों, नगर पालिकाओं और कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से युक्त सीवेज जल का उपयोग कैसे कर सकते हैं? ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो लेकिन हमें लाभ मिले? (a) एक विशेष जल निकाय में सीवेज के पानी कोस्टोर करें (b) सीवेज के पानी को सीधे कुछ नदियों में डाल कर (C) सीवेज के पानी में मछली पालन करके (d) पीने के पानी के स्रोतों में सीवेज का पानी मिलाएं S. सर
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Answer:
a
Explanation:
Ek Vishesh Jal nikal Mein Savage Ke Pani ko store Karen
Answer:एक विशेष जल निकाय में सीवेज के पानी कोस्टोर करें
Explanation:आदिकाल से ही मानव अपशिष्ट पदार्थों को जल स्रोतों में विसर्जित करता चला आ रहा है। वर्तमान समय में तीव्र औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि, जल स्रोतों का दुरुपयोग, वर्षा की मात्रा में कमी आदि मानवकृत एवं प्राकृतिक कारणों से जल प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
इस प्रकार मानव एवं विभिन्न क्रिया-कलापों से जब जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में ह्रास हो जाता है तो ऐसे जल को प्रदूषित जल कहा जाता है। स्पष्ट है कि जब जल की भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक संरचना में इस तरह का परिवर्तन हो जाता है कि वह जल किसी प्राणी की जीवन दशाओं के लिये हानिकारक एवं अवांछित हो जाता है, तो वह जल ‘‘प्रदूषित जल” कहलाता है। इस तरह जल प्रदूषण चार प्रकार का होता हैl
जल प्रदूषण की रोकथाम हेतु सबसे आवश्यक बात यह है कि हमें जल प्रदूषण को बढ़ावा देने वाली प्रक्रियाओं पर ही रोक लगा देनी चाहिए। इसके तहत किसी भी प्रकार के अपशिष्ट या अपशिष्ट युक्त बहिःस्राव को जलस्रोतों में मिलने नहीं दिया जाना चाहिए। घरों से निकलने वाले खनिज जल एवं वाहित मल को एकत्रित कर संशोधन संयन्त्रों में पूर्ण उपचार के बाद ही जलस्रोतों में विसर्जित किया जाना चाहिए। पेयजल के स्रोतों (जैसे - तालाब, नदी इत्यादि) के चारों तरफ दीवार बनाकर विभिन्न प्रकार की गंदगी के प्रवेश को रोका जाना चाहिए। जलाशयों के आस-पास गंदगी करने, उनमें नहाने, कपड़े धोने आदि पर भी रोकथाम लगानी चाहिए।
नदी एवं तालाब में पशुओं को स्नान कराने पर भी पाबंदी होनी चाहिए। उद्योगों को सैद्धान्तिक रूप से जल स्रोतों के निकट स्थापित नहीं होने देना चाहिए। इसके अतिरिक्त पहले से ही जलस्रोत के निकट स्थापित उद्योगों को अपने अपशिष्ट जल का उपचार किए बिना जलस्रोतों में विसर्जित करने से रोका जाना चाहिए।
कृषि कार्यों में आवश्यकता से अधिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग को भी कम किया जाना चाहिए। जहाँ रोक लगाना सम्भव न हो, वहाँ इनका प्रयोग नियंत्रित ढंग से किया जाना चाहिए।
समय-समय पर प्रदूषित जलाशयों में उपस्थित अनावश्यक जलीय पौधों एवं तल में एकत्रित कीचड़ को निकालकर जल को स्वच्छ बनाए रखने के लिये प्रयास किये जाने चाहिए।
कुछ जाति विशेष की मछलियों में ऐसा गुण होता है कि वे मच्छरों के अण्डे, लार्वा तथा जलीय खरपतवार का भक्षण करती हैं। फलतः जल में ऐसी मछलियों के पालने से जल की स्वच्छता कायम रखने में सहायता मिलती है।
जन-साधारण के बीच जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विधियों के बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए, ताकि जल का उपयोग करने वाले लोग जल को कम से कम प्रदूषित करें या प्रदूषित न करें तथा संरक्षण करें।