History, asked by rudrac498, 5 months ago

11. सतत कि करणीयम् ?​

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Answered by abhiramwarrier2007
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सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (Continuous and comprehensive evaluation) भारत के स्कूलों में मूल्यांकन के लिये लागू की गयी एक नीति है जिसे २००९ में आरम्भ किया गया था। इसकी आवश्यकाता शिक्षा के अधिकार के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक हो गया था। यह मूल्यांकन प्रक्रिया राज्य सरकारों के परीक्षा-बोर्डों तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा शुरू की गयी है। इस पद्धति द्वारा ६वीं कक्षा से लेकर १०वीं कक्षा के विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जाता है। कुछ विद्यालयों में १२वीं कक्षा के लिये भी यह प्रक्रिया लागू है।

इतिहास

भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने विद्यालय शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने के दिनांक 20 सितंबर, 2009 को घोषित किया कि सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) को सुदृढ़ बनाया जाएगा और अक्टूबर 2009 से कक्षा 9 के लिए सभी संबद्ध विद्यालयों में उपयोग किया जाएगा। परिपत्र में आगे बताया गया था कि वर्तमान शैक्षिक सत्र 2009 -10 से कक्षा 9 और 10 के लिए नई ग्रेडिंग प्रणाली लागू की जाएगी। दिनांक 29 सितंबर, 2009 के परिपत्र संख्या 40/29-09- 2009 में उल्लिखित कक्षाओं के लिए लागू की जाने वाली ग्रेडिंग प्रणाली के सभी विवरण प्रदान किए गए थे। सीबीएसई ने 6 अक्टूबर, 2009 से प्रशिक्षक-प्रशिक्षण फॉर्मेट में कार्यशालाओं के माध्यम से देश भर में सतत तथा व्यापक मूल्यांकन प्रशिक्षण देना आरंभ किया था।

सतत तथा व्यापक मूल्यांकन क्या है?

सतत तथा व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन की प्रणाली जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं।

यह निर्धारण के विकास की प्रक्रिया है जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य व्यापक आधारित अधिगम और दूसरी ओर व्यवहारगत परिणामों के मूल्यांकन तथा निर्धारण की सततता में हैं।

इस योजना में शब्द ‘‘सतत’’ का अर्थ छात्रों की ‘‘वृद्धि और विकास’’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन करने पर बल देना है, जो एक घटना के बजाय एक सतत प्रक्रिया है, जो संपूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में निर्मित हैं और शैक्षिक सत्र के पूरे विस्तार में फैली हुई है। इसका अर्थ है निर्धारण की नियमितता, यूनिट परीक्षा की आवृत्ति, अधिगम के अंतरालों का निदान, सुधारात्मक उपायों का उपयोग, पुनः परीक्षा और स्वयं मूल्यांकन।

दूसरे शब्द ‘‘व्यापक’’ का अर्थ है कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक दोनों ही पक्षों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है। चूंकि क्षमताएं, मनोवृत्तियां और अभिरूचियां अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा अन्य रूपों में प्रकट करती हैं अतः यह शब्द विभिन्न साधनों और तकनीकों के अनुप्रयोग के लिए उपयोग किया जाता है (परीक्षा और गैर-परीक्षा दोनों) तथा इसका लक्ष्य निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों में छात्र के विकास का निर्धारण करना हैः

ज्ञान

समझ / व्यापकता

लागू करना

विश्लेषण करना

मूल्यांकन करना

सृजन करना

आकलन

मापन

परीक्षा / परीक्षण

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