Hindi, asked by rn649635, 5 months ago

12. निम्नलिखित गद्यांशको पढ़कर
बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ ? यदि हमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशा जनक ही होगा,
क्योंकि सफलता की, विजयकी, उन्नति की कुंजी तो अविचल श्रद्धा ही है।
(1)
उपर्युक्त गद्यांश भाषा भारती कक्षा 8 के
किस पाठ से लिया गया है?

Answers

Answered by BABYDOLL0806
2

Answer:

nhi samjh aa rha hai question

maaf kar do

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