Hindi, asked by Vksehrawat9949, 1 month ago

121(क) जगदिश्वर के पाँव में, आपन मूड़ नवाय ।सिरी कृष्णी भगवान के, कहिं हौं चरित सुनाय ।।मन में तो मन मिल गइस आंखो रहिस समाय।मायाकंद में राधिका, मछरी असे तड़काय ।।जा दिन ते नंदलाल ला, ठाढ़े देखेव खोर।कांही नहीं सुहावै गोई ! किरिया तोर ।(ख) जात के बनिया जाना मोला। तन के नाँव मोर हे भोला ।।ला पायेव।उँहेल खेलवे कदेंन बादेव ।।​

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Answered by shishir303
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जगदिश्वर के पाँव में, आपन मूड़ नवाय।

सिरी कृष्णी भगवान के, कहिं हौं चरित सुनाय।।

मन में तो मन मिल गइस आंखो रहिस समाय।

मायाकंद में राधिका, मछरी असे तड़काय।।

जा दिन ते नंदलाल ला, ठाढ़े देखेव खोर।

कांही नहीं सुहावै गोई ! किरिया तोर ।

अर्थ ⦂ जगदीश्वर अर्थात प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों अपना सिर झुका नमन करते हुए श्रीकृष्ण की चरित्र का बखान करते हैं। कवि का मन श्रीकृष्ण के मन से पूरी तरह आत्मसात हो चुका है, और श्रीकृष्ण सदैव के लिए कवि की आँखों मे बस चुके हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम की माया में राधारानी भी मछली की भाँति तड़प रही हैं। कवि कहते हैं, जिस दिन से कोई प्रभु श्रीकृष्ण की प्रेम में रम जाता है, उस दिन से उसे प्रभु की भक्ति के अलावा संसार का कोई और काम अच्छा नही लगता।

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