14. पशुओं में सीगरोधन के चार सय लिखिर।
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पशुओं में सींग अपनी रक्षा तथा बचाव के लिए होते है जिससे वै दूसरे पशुओं पर हमला करते हैं|सींगों से पशुओं के नस्लों की पहचान भी होती है| लिकिन सींगों वाले पशुओं को नियंत्रित करना तथा उनके साथ काम करना मुश्किल होता है क्योंकि इसने अन्य पशुओं तथा उनके साथ काम करने वाले मनुष्यों को चोट लगने का सदैव भय रहता है|सींग टूट जाने पर पशु को बहुत तकलीफ होती है तथा सींग वाले पशुओं को होर्न कैंसर होने का भी खतरा रहता है| अत: आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से डेयरी फार्मिंग करने के लिए पशुओं को बचपन से ही सींग रहित कर दिया जाता है| सींग रहित पशुओं के साथ गौशाला में काम करना आसान होता है तथा पशु गौशाला में कम स्थान घेरता है| सींग रहित पशु देखने में भी सुंदर लगते हैं तथा उनकी बाज़ार में कीमत भी अपेक्षाकृत अधिक होती है|
बछड़ों/बच्छियों को सींग रहित करने के लिए जन्म के कुछ दिन बाद उनके सींगों की जड़ को दवा अथवा शल्य क्रिया द्वारा नष्ट कर दिया जाता है| यह कार्य गाय के बच्चे की 10-15 दिन की आयु तथा भैंस के बच्चे की 7-10 दिन की आयु में अवश्य करा लेना चाहिए क्योंकि तब तक सींग कई जड़ कपाल की हड्डी (स्कल) से अलग होती है जिसे आसानी से निकाला जासकता है| इससे अधिक आयु के बच्चे को सींग रहित करने से उसे तकलीफ होती है| पहले बछड़ों/बच्छियों को सींग रहित करने के लिए उनके सींग के निकलने के स्थान पर कास्टिक पोटाश का प्रयोग किया जाता था जिससे सींग की जड़ नष्ट हो जाती थी|लेकिन अब यह कार्य एक विशेष बिजली का यंत्र जिसे इलेक्ट्रिक डिहार्नर कहते हैं के साथ एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा किया जाता है| शल्य क्रिया से हले सींगों की जड़ों वाले स्थान को इंजेकशन देकर संज्ञाहीन (सुन्न) हर किया जाता है जिससे शल्य क्रिया के दौरान पशु को तकलीफ महसूस नहीं होती| सींग रहित करने के स्थान पर चमड़ी में थोड़े से घाव हो जाते हैं जिन पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाने से वे कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं|बड़े पशुओं को सींग रहित करना कुछ मुश्किल होता है क्योंकि इसमें बड़ी शल्य क्रिया करने की आवश्यकता होती है तथा घाव भी बड़ा होता है जिसके ठीक होने में कुछअधिक समय लगता है|
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