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प्रपन कमांक निम्न कविता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
तेरी है जगी सेरा आसमां, तू बहा मेहरबान न बख्शीश कर। सभी का है न, सभी तैर खुदा मेरै तू बछशीश कर। तेरी मर्जी
शेप मालिक हम इस दुनिया में आए हैं तेरी रहमत से हम सबने जिस्म औ जा पाए हैं। तू अपनी नजर हम पर रखना,
किस हाल में है यह खबर रखना।।
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Answer:
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर
कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि वे विपत्ति का सामना करने के लिए शक्ति प्रदान करें। निर्भयता का वरदान दें ताकि वह संघर्षों से विचलित न हो। वह अपने लिए सहायक नहीं आत्मबल और पुरुषार्थ चाहता है। सांत्वना-दिलासा नहीं बहादुरी चाहता है। वंचना, निराशा और दुखों के बीच प्रभु की कृपा शक्ति और सत्ता में आत्म-विश्वास का भाव चाहता है।
प्रश्न 2.
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं-कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर
‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’- के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि हे ईश्वर ! मेरे जीवन में जो भी दुख और कष्ट आने वाले हैं आप उनसे मुझे मत बचाओ। मैं आपसे इसको सहने के लिए साहस और शक्ति माँगता हूँ ताकि इन दुखों से घबराकर हार न मान बैठें। मैं साहसपूर्वक इनसे संघर्ष करना चाहता हूँ।
प्रश्न 3.
कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर
कवि जीवन संघर्ष में सहायक न मिलने पर ईश्वर को कोई दोष नहीं दे रहा है, बल्कि प्रभु से प्रार्थना कर रहा है कि विपत्ति में उसका बल और पौरुष न हिले यदि समस्त संसार भी उसके साथ धोखा करे तो भी उसका आत्मबल और विश्वास न डिगे। वह साहस और दृढ़ता से आपदाओं को कुचल दे।।
प्रश्न 4.
अंत में कवि क्या अननुय करता है?
उत्तर
अंत में कवि ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि सुख के पलों में भी वह ईश्वर को न भूले तथा इस समय में उसे प्रभु का चेहरा बार-बार नज़र आए। वह यह भी याद रखना चाहता है कि ये सुख भी उसके प्रभु की ही देन है। वह दुख के समय में प्रभु पर आस्था और विश्वास बनाए रखना चाहता है। वह किसी भी स्थिति में न अपने प्रभु पर विश्वास कम होने देना चाहता है और न उनकी शक्तियों के प्रति शंकाग्रस्त होना चाहता है।
प्रश्न 5.
“आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
“आत्मत्राण’ कविता के संदर्भ में यह शीर्षक पूर्णरूप से सार्थक है। आत्मत्राण का अर्थ है-अपने भाव से निवारण या बचाव। कवि अपने मन के भय से छुटकारा पाना चाहता है और ईश्वर से इसी छुटकारे के लिए शक्ति प्राप्त करना चाहता है। वह जीवन की हर परिस्थिति का निर्भय होकर सामना करना चाहती है। वह समस्त विपदा, भय, ताप-दुख, हानि-लाभ और
वंचना स्वयं झेलने को तैयार है। केवल आत्मबल, पौरुष व आस्था का सहारा लेकर आत्मत्राण की कामना करता है।