Hindi, asked by BoxVooxe, 11 months ago

150 word essay in Hindi on jako rake saiya, maar sake na Koi.​

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Answered by TanishAgarwal7275
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जाको राखे साइयां, मार सके ना कोय

यह एक अतिप्रचलित कथन है, जिसका तात्पर्य यह है कि जिसकी रक्षा ईश्वर स्वयं करना चाहते हैं, उसे कोई भी मार नहीं सकता, चाहे संपूर्ण संसार दुश्मन हो जाए लेकिन कोई भी उसका बाल बांका नहीं कर सकता। ईश्वर जब तक किसी व्यक्ति के साथ होते हैं तब तक कोई भी उस व्यक्ति का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भगवान जिसे आश्रय प्रदान करते हैं, वह सुरक्षित हो जाता है। अतः जिसकी वे रक्षा करते हैं, उसे कोई कदापि नहीं मार सकता।

हमारी यह मान्यता रही है कि संपूर्ण सृष्टि ईश्वर निर्मित है। उन्होंने ही संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण किया है। विभिन्न ग्रह, पृथ्वी, समुद्र, पर्वत, नदियां, विभिन्न प्राणी, मनुष्य आदि सभी उन्ही की रचना है। जड़-चेतन सभी उन्हीं की इच्छा का परिणाम बताए गए हैं। तात्पर्य यह है कि भगवान सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है तथा जन्म और मृत्यु दोनों के संचालक माने गए हैं। इसी कारण लोग यह मानते हैं कि ईश्वर की कृपा जिस पर हो जाती है, उसे कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता क्योंकि सब कुछ का संचालक तो स्वयं ईश्वर ही है।

जो चीज निर्मित होती है उसे नष्ट भी होना है। जो उत्पन्न हुआ है उसकी समाप्ति भी निश्चित है। इसी प्रकार जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी तय है, लेकिन समय से पूर्व किसी दुर्घटना का शिकार होने पर भी यदि कोई मृत्यु से बच जाता है, तो उसमें दैवीय शक्ति का ही हाथ मानना चाहिए। परमात्मा यदि किसी से प्रसन्न है तो वह उसे सभी प्रकार की आपदाओं से सुरक्षित रखते हैं। हम देखते हैं कि बाग-बगीचों में प्रयत्नपूर्वक लगाए गए पौधे नष्ट हो जाते हैं परंतु जंगल में अपने आप उत्पन्न पौधे, जिन की रक्षा और सिंचाई की कोई प्रवाह नहीं करता, वे हरे भरे तथा विकसित हो जाते हैं। इससे यही पता चलता है कि भगवान जिसकी रक्षा करते हैं उसका कुछ भी नहीं बिगड़ सकता और जिनकी मृत्यु भाग्य में होती है, में तमाम उपाय करने के बाद भी वह बाख नहीं सकता।

भारतीय संस्कृति में कई ऐसी कहानियां प्रचलित हैं जो बताती हैं कि परमात्मा की कृपा प्राप्त अकेला होते हुए भी सुरक्षित रहा और उसे मारने के विभिन्न उपाय विफल हो गए। भक्त प्रहलाद को उसके पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने मारने के कई प्रयत्न किए, लेकिन उसका कुछ नहीं बिगड़ा। अपितु हिरण्यकश्यप को ही भगवान ने प्रकट होकर मार डाला तथा अपने भक्त की रक्षा की। इसी प्रकार कृष्णभक्त मीरा को मारने के लिए मेवाड़ के राजा विक्रमादित्य ने विष का प्याला, सांप आदि भेजा, परंतु मीरा का बाल बांका भी न हो सका। कबीर को मारने के लिए उन्हें जंजीर से बांधकर गंगा नदी में डाल दिया गया, परंतु उन्हें कुछ नहीं हुआ और वह सुरक्षित नदी से बाहर आ गए। आज के समय में भी हम किसी प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना में लोगों के जीवित बचे जाने की खबर समाचार पत्र में पढ़ते हैं या टेलीविजन पर देखते हैं। इस प्रकार सुरक्षित बच निकलना चमत्कार प्रतीत होता है। इससे सिद्ध होता है कि भगवान जिसकी रक्षा करते हैं उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता। जब ईश्वर का आदेश होता है तभी वह हंसते-हंसते प्राण छोड़ते हैं उससे पहले नहीं।

ईश्वर किसी की रक्षा कैसे करते हैं, इस विषय में कई तरह के मत हो सकते हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति खतरे में पड़ा होने के बाद भी सुरक्षित निकलता है या कई बार किसी आपदा में बड़ी संख्या में लोगों के मर जाने के बाद भी जीवित बच निकलता है तो उसे हम दैवीय कृपा मान लेते हैं। वस्तुतः कई ऐसे साधन उपस्थित हो जाते हैं, जिनसे व्यक्ति खतरे में पड़ा होने के बावजूद भी सुरक्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए पांडवों को मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षाग्रह बनवाया। पांडवों को इसकी जानकारी भी नहीं थी, लेकिन विदुर के गुप्त संदेश से वे उससे बच निकले और फिर पांचाल जाकर स्वयं द्रौपदी का वरण किया। दुर्योधन कुछ और ही करना चाहता था, परंतु ईश्वरीय साधनों के द्वारा पांडव न केवल सुरक्षित ही रहे, बल्कि अधिक शक्तिशाली भी हो गए। अतः भगवान की कृपा किस रूप में और किस माध्यम से प्राप्त हो जाए यह कोई भी नहीं जान सकता। लेकिन चमत्कार होने पर हम उसे भगवत कृपा ही समझते हैं और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।

अतः इस सूक्ति से हमें प्रेरणा मिलती है कि जब तक हमारा जीवन है, तब तक हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमें सांसारिक लोगों से अधिक उस सर्वशक्तिमान भगवान पर भरोसा रखना चाहिए। इसलिए हमें किसी से डरने या भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। यदि ईश्वर की कृपा हम पर होगी तो वे स्वयं हमारी रक्षा और समृद्धि के साधन प्रस्तुत कर देंगे। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हम सद्मार्ग पर चलें, सत्य और न्याय का साथ दें, परोपकार करें, दीन-दुखियों की सहायता करें एवं प्राणीमात्र के कल्याण के लिए तत्पर रहें। जो ईश्वर को सदा अपने साथ समझता है तथा पीड़ित-दुखियों की सेवा करता है, परमात्मा भी उसकी रक्षा के लिए अवश्य आते हैं।

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