1833 charter act negative effect in hindi
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दरअसल 1784 में पिट्स इंडिया ने एक बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की थी जिसका काम ईस्ट इंडिया कंपनी पर शासन करना था। इसके बाद 1773 में कंपनी को एक चार्टर के द्वारा पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने की अनुमति दी गई। यह अनुमति बीस वर्षों के लिए थी जो 1793 में समाप्त हो गई। 1793 में इस चार्टर के नवीनीकरण के साथ ही न केवल कंपनी को भारत और चीन के साथ व्यापार करने की अनुमति दी गई बल्कि कंपनी के आला अफसरों के जीवन यापन का प्रबंध भारतीय खजाने से करने का निर्णय लिया गया। यह एक्ट जब बीस वर्ष बाद यानि 1813 में दोबारा नवीनीकरण के लिए ब्रिटिश संसद पहुंचा तब तक ब्रितानी संसद को भारत का औपनिवेशिक महत्व समझ आ चुका था। इसलिए इस एक्ट में कंपनी के हितों के साथ ही भारतीय समाज के हितों जैसे शिक्षा का भी ध्यान रखने की बात सोची गई। इसके साथ ही ब्रिटेन पर प्रथम विश्व युद्ध का बुरा प्रभाव पड़ चुका था। इसलिए ब्रिटेन के व्यापारी, नेपोलियन की व्यापारिक नाकाबंदी के कारण भारत और चीन के साथ व्यापार करके लाभ कमाने के लिए उत्सुक थे। इस एक्ट में इस प्रकार केवल ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार करने के एकाधिकार को समाप्त करके सम्पूर्ण ब्रिटेन के लिए भारतीय दरवाजे खोल दिये गए। ब्रिटिश व्यापारियो के लिए भारतीय बाज़ार एक दुधारू गाय साबित हुए जिसका उन्होने शोषण करके अपनी हानि को अनंत लाभों में बदलना शुरू कर दिया।