History, asked by vijyantsrivastava, 1 year ago

1857 ki kranti me farmers ki bhumika

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Answered by vikku2019
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.{1857 ki kranti mai farmers ki bhumika}

1857 में अंग्रेजों के खिलाफ़ सिपाही विद्रोह को पहले स्वाधीनता संग्राम के रूप में जाना जाता है.

इस संग्राम में अंग्रेजों से लड़ने के लिए साधारण किसानों ने हथियार उठा लिए, हालांकि उनके योगदान को बहुत हद तक भुला दिया गया.

लेकिन शोधकर्ताओं का एक दल अब इन किसानों से जुड़ी यादों को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लगा है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के बाहरी इलाके में स्थित बिजरौल गांव में 10 मई, 2017 को 1857 के विद्रोह- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह की 160वीं वर्षगांठ पर एक छोटा सा उत्सव मनाया गया.

गांव के निवासियों ने विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए अपने पूर्वज शाह मल को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने 1857 के संग्राम में हथियार उठाने के लिए अपने आस पड़ोस के 84 गांवों के हज़ारों किसानों को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया. लेकिन भारत के कई लोगों ने भी इस समृद्ध ज़मींदार के बारे में नहीं सुना है.

"इस ज़िले के लोग यह जानने के लिए उत्साहित थे कि 'उनके राज' की जीत हुई थी या फिर हमारे राज की जीत हुई."

बाबा शाह मल ने इस गांव में विद्रोह का नेतृत्व किया
शाह मल असाधारण रूप से साहसी थे. उन्होंने रसद सामाग्री इकट्ठा कर विद्रोहियों को भेजा था और यमुना नदी पर नौकाओं से बनी पुल को उड़ा कर दिल्ली के ब्रिटिश मुख्यालय और मेरठ के बीच संचार काट दिया.

जुलाई 1857 में शाह मल की अगुवाई में प्राचीन तलवारें और भालों से लैस करीब 3,500 किसानों ने घुड़सवारों, पैदल सेना और तोपखाना रेजिमेंट से लैस ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सैनिकों के साथ संघर्ष किया. इस लड़ाई में ज़मींदार की मौत हो गई.

इस घटना के बाद शाह मल की अहमियत काफ़ी बढ़ गई. उनकी बहादुरी के क़िस्से दूसरे हिस्सों में लोगों को बताए जाने लगे, ख़ासकर तब जब सिपाही विद्रोह उत्तर भारत के अन्य राजों में फैल गया.

गांव में 1857 के सिपाही विद्रोही का स्मारक चिह्न है

शाह मल के बाद की पीढ़ियों ने उनके सम्मान में एक स्मारक चिन्ह बनवाया. अब यहां किसानों और आम लोगों के लिए कई भूली यादों में से एक है जो विद्रोह का महत्वपूर्ण हिस्सा थे, जिसे मेरठ के समर्पित इतिहासकारों का एक समूह पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है.

सांस्कृतिक इतिहासकार सुमंता बनर्जी ने अपनी पुस्तक "इन द वेक ऑफ नक्सलबाड़ी" में लिखा कि 1857 के विद्रोह का एक महत्वपूर्ण घटक समूचे उत्तर भारत में हज़ारों किसानों का स्वैच्छिक रूप से विद्रोह में भाग लेना था.
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madhusreeja2017: Hi
madhusreeja2017: Nice lengthy anws
vikku2019: your welcome
vikku2019: hlo
madhusreeja2017: Gud afternoon
vikku2019: very good afternoon!!☺️☺️
vijyantsrivastava: good afternoon .
madhusreeja2017: Hlo vijay
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