Political Science, asked by saniya3430, 3 months ago

1946 में गणित संविधान सभा की विशेषताएं​

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Answered by khanahtesham383
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर पहली बार, वर्ष 1935 में एक संविधान सभा की मांग की थी. यह विचार एम.एन. रॉय के दिमाग की उपज था. ब्रिटिश सरकार ने 1940 के 'अगस्त प्रस्ताव' में कांगेस की इस बात को माना था. अंततः वर्ष 1942 में 'क्रिप्स प्रस्ताव' के तहत कांग्रेस की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया.

Answered by XxBadCaptainxX
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संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, जिसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के नाम से जाना जाता है, में हुई। इस अवसर के लिए कक्ष को मनोहारी रूप से सजाया गया था, ऊॅची छत से और दीवारगीरों से लटकती हुई चमकदार रोशनी की लड़ियाँ एक नक्षत्र के समान सुशोभित हो रही थीं। उत्साह और आनन्द से अभिभूत होकर माननीय सदस्यगण अध्यक्ष महोदय की आसंदी के सम्मुख अर्धवृत्ताकार पंक्तियों में विराजमान थे। विद्युत के द्वारा गरम रखी जा सकने वाली मेंजों को हरे कालीन से आवृत ढ़लवाँ चबूतरे पर लगाई गई थी। पहली पंक्ति में जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़्ााद, सरदार वल्लभभाई पटेल, आचार्य जे.बी.कृपलानी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्री हरे कृष्ण महताब, पं. गोविन्द वल्लभ पंत, डॉ बी. आर. अम्बेडकर, श्री शरत चंद्र बोस, श्री सी. राजगोपालाचारी और श्री एम. आसफ अली शोभायमान थे। नौ महिलाओं समेत दो सौ सात सदस्य उपस्थित थे।

उद्घाटन सत्र पूर्वाह्न 11.00 बजे आचार्य कृपलानी द्वारा संविधान सभा के अस्थाई अध्यक्ष डा. सच्चिदानंद सिन्हा का परिचय कराने से आरंभ हुआ। डा. सिन्हा और अन्य

सदस्यों का अभिवादन करते हुए आचार्य जी ने कहा : "जिस प्रकार हम प्रत्येक कार्य ईश्वर के आशीर्वाद से प्रारंभ करते हैं, हम डॉ सिन्हा से इन आशीर्वादों का आह्वान करने की प्रार्थना करते हैं ताकि हमारा कार्य सुचारु रूप से आगे बढ़े। अब, आपकी ओर से मैं एक बार फिर डा. सिन्हा को पीठासीन होने के लिए आमंत्रित करता हूं।"

अभिनन्दन के बीच पीठासीन होते हुए डॉ. सिन्हा ने विभिन्न देशों से प्राप्त हुए शुभकामना संदेशों का वाचन किया। अध्यक्ष महोदय के उद्घाटन भाषण और उपाध्यक्ष के नाम-निर्देशन के पश्चात् सदस्यों से अपने परिचय-पत्रों को प्रस्तुत करने का औपचारिक निवेदन किया गया। समस्त 207 सदस्यों द्वारा अपने-अपने परिचय-पत्र प्रस्तुत करने और रजिस्टर में हस्ताक्षर करने के पश्चात् पहले दिन की कार्यवाही समाप्त हो गई। कक्ष की सतह से लगभग 30 फुट ऊपर दीर्घाओं में बैठकर पत्रकारों और दर्शकों ने इस स्मरणीय कार्यक्रम को प्रत्यक्ष रूप से देखा। आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र ने संपूर्ण कार्यवाही का एक संयुक्त ध्वनि चित्र प्रसारित किया।

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