1970 से विश्व अर्थव्यवस्था में निरंतरता और बदलाव की चर्चा करें।
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समस्त देशों एवं समुदायों ने जिन राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं पर हामी भरी है उनमें एक बड़ा बदलाव अंतर्निहित होगा जिसकी पहचान विदेश सचिव एस. जयशंकर ने इस रूप में की है कि नियम आधारित व्यवस्था अब केवल विकसित दुनिया तक ही सीमित नहीं रह गई है।
इस साल रायसीना संवाद की थीम थी ‘विघटनकारी बदलावों का समुचित प्रबंधन करना’। वैसे तो पिछले सप्ताह अनेक विघटनकारी बदलावों पर चर्चा हुई थी, लेकिन भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने स्पष्ट रूप से इन चार प्रमुख विघटनकारी बदलावों या चुनौतियों का उल्लेख किया: चीन का अभ्युदय, संयुक्त राज्य अमेरिका के वैश्विक दृष्टिकोण एवं एशियाई रणनीति में मौजूदा फेरबदल, ‘गैर-बाजार’ अर्थव्यवस्था और किसी देश द्वारा आतंकवाद को प्रश्रय देना या उसे प्रायोजित करना।
जहां एक ओर भारत के शीर्ष राजनयिक ने प्रथागत ढंग से किसी का भी नाम लेने से परहेज किया, वहीं दूसरी ओर जनरल डेविड पेट्राउस उपर्युक्त अंतिम दो रुझानों के बारे में अपने आकलन को लेकर कहीं ज्यादा बेबाक थे। उन्होंने कहा कि हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि हम किसी और के बारे में नहीं, बल्कि चीन के ही बारे में बात कर रहे हैं।
सबसे पहले, सरकार-निर्देशित पूंजीवाद को सामान्य मान लिए जाने और गैर-बाजार अर्थव्यवस्थाओं के उभरने से आर्थिक संबंधों की पारंपरिक समझ के समाप्त हो जाने का अंदेशा है। पार्टी-सरकार द्वारा उद्योग पर अपना पूरा नियंत्रण रखने के साथ-साथ कंपनियों को अपने कामकाज में आजादी देने की उपेक्षा करते हुए सरकार की सत्ता एवं वैधता को अधिकतम सीमा तक बढ़ाने के लिए बाजारों का उपयोग किया जाना ‘चीन की विशिष्टताओं वाले पूंजीवाद’ का अभिन्न अंग है।
विगत महीनों के दौरान चीन ने छोटे राष्ट्रों के साथ निर्भरता का रिश्ता कायम करने के लिए इस मॉडल से लाभ उठाने की कोशिश की है। वहीं, दूसरी ओर चीन ने बड़े राष्ट्रों के मामले में बाध्यकारी अर्थनीति का इस्तेमाल किया है। वर्ष 2017 इस नई सामान्य स्थिति का साक्षी था : एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यहां तक कि यूरोप के कुछ हिस्सों में अवस्थित छोटी अर्थव्यवस्थाएं भी अब भारी-भरकम ऋणों से जूझ रही हैं जो चीन के सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों को देय हैं। वहीं, दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों को अब उच्च प्रौद्योगिकी वाले संवेदनशील क्षेत्रों में चीन के लक्षित और सरकारी नेतृत्व वाले या उसके द्वारा प्रोत्साहित निवेश का मुकाबला करना चाहिए।
गैर-बाजार अर्थव्यवस्था के आगमन और चीन की आम सहमति के उदय से उद्यमशीलता और विचारों एवं प्रौद्योगिकी के मुक्त प्रवाह के उस स्वर्ण युग का अंत हो सकता है, जो लगभग तीन दशकों तक पारदर्शी मुक्त बाजारों के तहत विकसित हुआ था। बाजार शक्ति के प्रति चीन के अपारदर्शी एवं विकृत संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण से निरंतर व्यापक असर पड़ने की संभावना है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक लगभग 20 लाख करोड़ (ट्रिलियन) अमेरिकी डॉलर की ओर अपनी राह अग्रसर कर रही है। इसके साथ ही यह बदलाव नि:संदेह उन छोटे देशों के आर्थिक विकल्पों को काफी प्रभावित करेगा जो चीन पर काफी हद तक निर्भर हैं। वहीं, इसके ऐसे नतीजे भी सामने आएंगे जो विश्व अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर देंगे।
दूसरा, कुछ देशों द्वारा आतंकवाद को प्रश्रय एवं संरक्षण दिए जाने के कारण वैश्विक शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। उधर, पारंपरिक सैन्य शक्ति और कूटनीति कुछ हद तक गैर-सरकारी प्रश्रय से बढ़ने वाले आतंकवादी खतरों से निपट सकती है। वहीं, जब कुछ देशों की सरकारें विशेषकर एक परमाणु छत्र या परिष्कृत मारक क्षमता की सुरक्षा के तहत सरकारी नीति के एक साधन के रूप में आतंकवाद का उपयोग करती हैं तो क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा की दिशा में कोई भी व्यापक दृष्टिकोण अपनाना कठिन हो जाता है।
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- इसका कारण, उदाहरण के लिए, 1970 के दशक के अंत में लगातार वैश्विक आर्थिक संकट है।तेल संकट, ऋण संकट, विभिन्न आर्थिक संकट और मुद्रास्फीतिजनित मंदी |
- इस वित्तीय आपदा ने राजनेताओं को यह तय करने के लिए मजबूर कर दिया है कि अर्थव्यवस्था और अन्य सभी चीजों को बेहतर बनाने के लिए गहराई से या अत्यधिक हस्तक्षेप करना है या नहीं |
- शब्द "नई विश्व व्यवस्था" इतिहास में एक नई अवधि को संदर्भित करता है जिसने विश्व राजनीतिक विचार और शक्ति संतुलन में नाटकीय परिवर्तन किए हैं।
- शब्द की विभिन्न व्याख्याओं के बावजूद, यह शब्द मुख्य रूप से विश्व सरकारों के वैचारिक विचारों से जुड़ा है, लेकिन इसे केवल वैश्विक समस्याओं की पहचान करने, समझने या हल करने के नए सामूहिक प्रयासों के आलोक में ही माना जा सकता है जो किसी व्यक्ति की क्षमताओं से परे हैं देश।
- -राज्य।प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक की अवधि में वुडरो विल्सन के अंतरराष्ट्रीय शांति के दृष्टिकोण के संदर्भ में "न्यू वर्ल्ड ऑर्डर" या इसी तरह की भाषा का उपयोग किया जाता है।
- [ए] विल्सन ने लीग ऑफ नेशंस से आक्रामकता और संघर्ष को रोकने के लिए कहा।
- द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में संयुक्त राष्ट्र और ब्रेटन वुड्स प्रणाली की योजनाओं का वर्णन करने के लिए अभिव्यक्ति का उपयोग किया गया था, जो कि राष्ट्र संघ के साथ इसके नकारात्मक संबंध के कारण था।
- हालांकि, कई आलोचकों ने पूर्वव्यापी रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में जीत के तार को "नई दुनिया" के रूप में संदर्भित किया है |
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