19वीं 20वीं सदी में फ्रांसीसी क्रांति कौन सी विरासत छोड़ गई
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उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रांति निम्नलिखित विरासत छोड़ गई :
(क) स्वतंत्रता :
स्वतंत्रता फ्रांसीसी क्रांति का एक मूल सिद्धांत था। इस दिन से यूरोप के लगभग सभी देश बड़े प्रभावित हुए। फ्रांस में मानव अधिकारों की घोषणा पत्र द्वारा सभी लोगों को उनके अधिकारों से परिचित कराया गया। देश में दासत्व का अंत कर दिया गया और निर्धन किसानोें को सामंतों के चुंगल से छुटकारा दिलाया गया। फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम स्वरुप अनेक देशों में निरंकुश शासन के विरुद्ध आंदोलन आरंभ हो गए। राजाओं के दैवी अधिकार समाप्त हो गए और निरंकुश शासन के स्थान पर संवैधानिक शासन की स्थापना होने लगी। लोगों ने धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना आरंभ कर दिया।
(ख) समानता :
क्रांति के कारण निरंकुश शासन का अंत हुआ और इसके साथ ही समाज में फैली असमानता का भी अंत हो गया। समानता क्रांति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत था। इसका प्रचार लगभग सभी देशों में हुआ। इसके फलस्वरूप सभी लोग कानून की दृष्टि में एक समान समझे जाने लगे। सभी लोगों को उन्नति के समान अवसर प्राप्त होने लगे। सरकार अब सभी लोगों से एक समान व्यवहार करने लगी। वर्ग भेद हमेशा के लिए समाप्त हो गया। उच्च वर्ग के विशेषाधिकारों का अंत हो गया।समानता के इस सिद्धांत के द्वारा अनेक स्थानों पर आदर्श समाज की स्थापना हुई। स्त्रियों ने भी पुरुषों के समान अधिकारों की मांग की जो अंत में उन्हें प्राप्त हो गए। अतः स्पष्ट है कि फ्रांसीसी क्रांति ने समानता का आदर्श स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(ग) लोकतंत्र :
फ्रांस के क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर दिया और इसके स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना की। लोगों को बताया गया कि राज्य की सारी शक्ति जनता में निहित है और राजा के दैवी अधिकारों का सिद्धांत बिलकुल गलत है। लोगों को यह अधिकार है कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा सरकार चलाएं । फ्रांस की क्रांति ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकार केवल जनता के लिए ही नहीं बल्कि जनता के द्वारा बनाई जाए । यद्यपि नेपोलियन ने लोकतंत्र का अंत करके फ्रांस के सम्राट की पदवी धारण की थी तो भी यह कार्य जनता द्वारा ही हुआ था। आरंभ में लोकतंत्र के सिद्धांत के विरूद्ध यूरोप में प्रतिक्रिया हुई परंतु कुछ समय पश्चात यूरोप तथा संसार के अन्य देशों ने इस सिद्धांत के महत्व को समझा और उन देशों में लोकतंत्र जन्म हुआ।
(घ) राष्ट्रीयता की भावना :
फ्रांसीसी क्रांति के कारण फ्रांस तथा यूरोप के अन्य देशों में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ। क्रांति के समय जब ऑस्ट्रिया तथा प्रशा ने फ्रांस पर आक्रमण किया था तो फ्रांस के सभी लोग कंधे से कंधा मिलाकर उसके विरुद्ध लड़े थे। यह उनकी राष्ट्रीय भावना का ही परिणाम था। वे फ्रांसीसी होने के नाते एक दूसरे को अपना भाई समझते थे और कहते थे कि देश का शत्रु हम सब का शत्रु है। अतः उसका सामना करने के लिए हमें एकता के सूत्र में बंध जाना चाहिए । इसी भावना के कारण नेपोलियन के सैनिकों ने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की। राष्ट्रीयता की यह भावना केवल फ्रांस तक ही सीमित न रह कर जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों में भी पहुंची। यहां के लोगों ने भी अपने देश से विदेशी नेपोलियन की सेनाओं को निकालने के लिए संघर्ष करना आरंभ कर दिया । इसी भावना के कारण जर्मनी , इटली आदि देशों में संगठन के आंदोलन प्रबल हुए और वहां शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना हुई।
(ड़) शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन :
फ्रांस में क्रांति से पूर्व शिक्षा का कार्य चर्च के हाथों में था। क्रांतिकारी इस बात को भलीभांति जानते थे कि शिक्षा एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है और उसका चर्च के हाथों में लेना क्रांति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है । यही कारण था कि उन्होंने शिक्षा कार्य चर्च के हाथों से लेकर राज्य को सौंप दिया था। नेपोलियन के काल में पेरिस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गई ।राष्ट्र में अनेक शिक्षा संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ । उसे आदर्श मानकर यूरोप के अन्य देशों में भी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई । विज्ञान की शिक्षा तथा अनुसंधान पर अधिक बल दिया गया।
(च) सामंतवाद से प्रजातंत्र की ओर :
क्रांति से पूर्व फ्रांस में सामंतवाद का बोलबाला था। सामंत बड़े शक्तिशाली थे और राज्य की ओर से उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त थे। फ्रांसीसी क्रांति में सामंतवाद का अंत कर उनके विशेष अधिकारों से वंचित कर दिया गया। अब उन्हें भी अन्य लोगों की भांति कर देने पड़ते थे। दासत्व का अंत कर दिया गया और वर्ग भेद मिटा दिए गए। समाज का गठन समानता के आधार पर किया गया । धीरे-धीरे परिवर्तन यूरोप तथा संसार के अन्य देशों में भी किए गए। इस प्रकार सामंतवाद का स्थान प्रजातंत्र ने लेना आरंभ कर दिया।
सच तो यह है कि फ्रांसीसी क्रांति ने प्रचलित कानून का रूप बदल दिया , सामाजिक मान्यताएं बदल डाली और आर्थिक ढांचे में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए। राजनीतिक दल नवीन आदर्शों से प्रेरित हुए । सुधार आंदोलन तीव्र गति से चलने लगे। साहित्यकारों ने नवीन वाणी पाई। फ्रांसीसी क्रांति के तीन स्तंभ - समानता , स्वतंत्रता तथा बंधुत्व प्रत्येक के लिए पथ प्रदर्शक बने। मानवता के लिए अधिकार प्रयोग समाप्त हुआ और एक आशा भरी प्रात: का उदय हुआ।
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