1ईश्वर के द्वारा प्रकृति के भीतर छिपाया खजाना क्या है?
2कवि के अनुसार उसका भाग्य क्या है, और शक्ति क्या है ?
3भाग्यवाद और शोषण किसका प्रतीक है?
4अपना सुख
उसने अपने
भुजबल से ही पाया है।" का आशय स्पष्ट कीजिए
Answers
(i) ईश्वर के द्वारा प्रकृति के भीतर छिपाया खजाना क्या है?
✎... कवि के अनुसार ईश्वर के द्वारा प्रकृति के भीतर सुख एवं संपत्ति का खजाना छिपाया गया है और केवल उद्यमी नर यानी कर्मयोगी इस खजाने को अपने उद्यम से खोज सकते हैं। अर्थात जो भाग्यवादी नहीं होते केवल अपने उद्यम (कर्म) विश्वास रखते हैं, वह इस सुख संपत्ति के खजाने को प्रकृति के भीतर से निकाल सकते हैं।
(ii) कवि के अनुसार उसका भाग्य क्या है, और शक्ति क्या है?
✎... कवि के अनुसार उसका भाग्य उसके लिए एक छलावा के समान है, जबकि उसका उद्यम (कर्म) उसके लिए शक्ति के समान है। भाग्य के भरोसे रहकर व्यक्ति कुछ नहीं पा सकता, जबकि उद्यम करके यानि कर्म करके व्यक्ति अपनी सब कुछ पा सकता है।
(iii) भाग्यवाद और शोषण किसका प्रतीक है?
✎... कवि के अनुसार भाग्वाद पाप का आवरण है, जो शोषण करने का हथियार बन कर शोषण करने का साधन बनता है। भाग्यवाद के सहारे कुछ लोग दूसरों को छलावे में रखकर उनका शोषण करते हैं, इसलिए भाग्यवाद और शोषण पाप एवं छल का प्रतीक है।
(iv) “अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।" का आशय स्पष्ट कीजिए।
✎... “अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।" इन पंक्तियों के माध्यम से कवि आशय ये है कि ईश्वर ने सारी सुख संपत्ति प्रकृति के गर्भ में ही छुपा रखी है। मनुष्य केवल अपने उद्यम रूपी कर्म से ही इस सुख संपत्ति के खजाने को पा सकता है। अर्थात मनुष्य अपने भुजबल यानि कर्म रूपी शक्ति से हर तरह की सुख-संपत्ति को अर्जित कर सकता है, भाग्य के भरोसे बैठकर नहीं।
(“उद्यमी नर” कविता ‘रामधारी सिंह दिनकर’)
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