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अनुबन्ध भंग क्या होता है। अनुबन्ध भंग की दशा मे पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध
उपचारों की व्याख्या कीजिए।
Answers
उत्तर:
अनुबन्ध भंग मतलब अनुबंध या कानून के उल्लंघन पर प्रावधान नहीं है। जब कोई पार्टी अपने वादे को पूरा करने के लिए अनुबंध को तोड़ती है, या अपने आचरण या शब्दों से धीमा या अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने के लिए अनिच्छा होती है, तो अनुबंध का उल्लंघन होता है।
सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि यदि अनुबंध में कोई एक पक्ष वादे को तोड़ता है या किसी भी तरह से अपने संविदात्मक दायित्व को निभाने में विफल रहता है, तो अनुबंध का उल्लंघन होता है।
अनुबंध के उल्लंघन के दो प्रकार हैं।
(1) वास्तविक उल्लंघन
(2) प्रत्याशा उल्लंघन
अनुबन्ध भंग की दशा मे पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध उपचार:
1) अनुबंध के बचाव के लिए मुक़दमा
2) नुकसान के लिए मुक़दमा
3) विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुक़दमा
4) निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा
1) अनुबंध के बचाव के लिए मुक़दमा : जब कोई अनुबंध करने वाला पक्ष होता है, तो दूसरा पक्ष अनुबंध को रद्द कर सकता है और अनुबंध के तहत अपना दायित्व नहीं निभा सकता है। यदि कोई पक्ष अनुबंध को सही तरीके से याद रखता है तो वह अनुबंध के गैर-प्रदर्शन के कारण नुकसान और क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजा पाने का हकदार है।
2) नुकसान के लिए मुक़दमा : पीड़ित पक्ष को हर्जाने के लिए मुकदमा करने का अधिकार है। इस तरह के नुकसान अनुबंध के उल्लंघन के परिणामस्वरूप उसके द्वारा नुकसान या चोट के लिए पीड़ित पक्ष को एक मौद्रिक मुआवजा दिया जाता है। अंतर्निहित नुकसान का सिद्धांत सजा नहीं है, बल्कि मुआवजा है। हर्जाने को देने का उद्देश्य उत्तेजित पक्ष को उसी वित्तीय स्थिति में लाना है। जिसमें वह अनुबंध में प्रवेश करने से पहले होता।
3) विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुक़दमा: जब अनुबंध पक्ष में से एक अपने वादे का प्रदर्शन करने में विफल रहता है, तो वह पीड़ित पक्ष को नुकसान का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है: जब क्षतिग्रस्त पक्ष के नुकसान की भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति पर्याप्त नहीं होती है, तो अदालत दोषी पक्ष को अनुबंध के अनुसार अनुबंध पूरा करने का आदेश दे सकती है। नियम और शर्तों के लिए, इसिस ने विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मुक़दमा कहा।
4) निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा: अनुबंध की शर्तों का पालन करना उन अनुबंधों का दायित्व है जो अनुबंध के गठन के समय उनके द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी। जब अनुबंध पक्ष में से एक अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करता है, तो अदालत संबंधित पक्ष को अनुबंध की शर्तों का पालन करने के लिए निर्देश देने वाला आदेश जारी कर सकती है, इसे निषेधाज्ञा के लिए सूट कहा जाता है। एक अनुबंध के लिए एक पार्टी कुछ नहीं करने का वादा कर सकती है और वह ऐसा करता है और इस तरह अनुबंध का उल्लंघन करता है। घायल पक्ष अनुबंध के नियमों और शर्तों को नहीं तोड़ने के लिए एक आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत में मुकदमा दायर कर सकता है।
Answer:
अनुबन्ध भंग क्या होता है। अनुबन्ध भंग की दशा मे पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध
उपचारों की व्याख्या इस प्रकार है
Explanation:
किसी राज्य अथवा सरकार द्वारा सामाजिक व्यवस्था को सुचारुरुप से संचालित करने हेतु तथा मानवीय आचरण एवं व्यवहारों को व्यवस्थित तथा क्रियान्वित करने के उद्देश्य से जो नियम बनाये जाते हैं , उन्हें 'सन्नियम' या राजनियम कहा जाता है। सालमण्ड (Salmond) के अनुसार, सन्नियम या राजनियम ( विधि) से आशय राज्य द्वारा स्वीकृत एवं प्रवर्तित उन सिद्धान्तों के समूह से हैं जिनका उपयोग उसकेद्वारा न्याय प्रशासन के लिए किया जाता है।
इस अधिनियम की धारा 2 में इन आधारभूत शब्दों को परिभाषित किया गया है:
(1) प्रस्ताव (Proposal) : जब एक व्यक्ति किसी दूसरेव्यक्ति के सम्मुख किसी काम को करनेअथवा न करने के सम्बन्ध में अपना विचार इस उद्देश्य से प्रकट करता है कि उस व्यक्ति की सहमति उस कार्य को करनेअथवा न करने के सम्बन्ध में प्राप्त हो जाये, तो कहा जाता है कि पहले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के सम्मुख प्रस्ताव किया है। [ धारा 2 (a) ]
(2) वचन (Promise) : वह व्यक्ति जिसकेसम्मुख प्रस्ताव किया गया है, उसकेप्रति अपनी सहमति देदेता है, तो प्रस्ताव स्वीकृत समझा जाता है। एक प्रस्ताव जब स्वीकार कर लिया जाता है, तो वह वचन कहलाता है। [धारा 2 (b)]
(3) वचनदाता एवं वचनग्रहीता (Promisor and Promises) : प्रस्ताव करने वाले व्यक्ति को प्रस्तावक अथवा प्रतिज्ञाकर्ता अथवा वचनदाता कहते हैं तथा उस प्रस्ताव को स्वीकार करनेवालेव्यक्ति को वचनग्रहीता अथवा स्वीकर्ता कहते हैं। [धारा 2(c)]
(4) प्रतिफल : जब वचनदाता की इच्छा पर वचनग्रहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य किया हैअथवा करने से विरत रहा है; अथवा कोई कार्य करता है अथवा करने से विरत रहता है; अथवा कोई कार्य करने अथवा विरत रहनेका वचन देता है तो ऐसा कार्य या विरति या वचन उस वचन का प्रतिफल कहलाता है।
(5) ठहराव (करार) : प्रत्येक वचन या वचनों का प्रत्येक समूह जो एक दूसरेका प्रतिफल हो, ठहराव कहलाता है।
(6) पारस्परिक वचन : ऐसे वचन जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल अथवा आंशिक प्रतिफल होतेहैं , पारस्परिक वचन कहलातेहैं ।
इन सभी लक्षणों का संक्षिप्त विवेचन नीचेकिया गया है:
(1) दो या दो से अधिक पक्षकारों का होना - एक वैध अनुबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि उसमेदो या दो से अधिक पक्षकार होने चाहिए। कम से कम दो पक्षकारों का होना इसलिए आवश्यक होता है कि एक पक्षकार किसी कार्य को करने अथवा न करने के लिए प्रस्ताव करता है और दूसरा पक्षकार उस पर अपनी सहमति व्यक्त करता है। जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुबन्ध में एक पक्षकार का दायित्व उत्पन्न होता है और दूसरे पक्षकार को कुछ वैधानिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कोई भी एक व्यक्ति स्वयं ही प्रस्ताव एवं स्वीकृति दोनों कार्य एक साथ नही कर सकता है।
(2) ठहराव : प्रस्ताव एवं स्वीकृति- दो या दो से अधिक पक्षकारों के बीच ठहराव या समझौता होना आवश्यक होता है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2(e) के अनुसार, प्रत्येक वचन या वचनों को प्रत्येक समूह जिसमें एक वचन दूसरेका प्रतिफल होता है, ठहराव कहलाता है। जब एक पक्षकार द्वारा किया गया प्रस्ताव दूसरे पक्षकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो वह वचन बन जाता है। ठहराव के दोनों ही पक्षकार एक दूसरे को प्रतिफल के रुप में वचन देतेहैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं ' कि प्रस्ताव एवं स्वीकृति ठहराव के अनिवार्य तत्व हैं।
(3) पक्षकारों की आपस में वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा (Intention of the parties to create Legal Relations) - वैध अनुबन्ध के लिए ठहराव के पक्षकारों की आपस में वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करनेकी इच्छा होना आवश्यक है। एक व्यक्ति द्वारा अपने मित्र के यहां भोजन का आमन्त्रण स्वीकार करना अनुबन्ध नही हो सकता है। लॉर्ड स्टोवेल (Lord Stowell) ने एक विवाद के निर्णय में लिखा है कि, अनुबन्ध एक खाली समय का खेल नही होना चाहिए; यह केवल आनन्द एवं हंसी-मजाक की वस्तु नही होना चाहिए जिसमें गम्भीर परिणामों की पक्षकारों द्वारा कभी इच्छा न की गयी हो । अनुबन्ध करते समय पक्षकारों के मस्तिष्क में यह बात उत्पत्र होना आवश्यक है कि उनके एक-दूसरे के प्रति वैधानिक दायित्व उत्पत्र हुए हैं एवं उन्हें एक; दूसरे के विरुद्ध उन दायित्वों को पूरा कराने के लिए वैधानिक अधिकार भी प्राप्त हुए हैं जिनका उपयोग वे आवश्यकता पड़ने पर कर सकतेहैं। उदाहरणार्थ , सामान का क्रय-विक्रय करने सम्बन्धी ठहराव अनुबन्ध का रुप लेते हैं क्योंकि इन ठहरावों में पक्षकारों के मध्य वैधानिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं।
(4) पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति - अनुबन्ध के सभी पक्षकारों की ठहराव की बातों के सम्बन्ध में स्वतन्त्र सहमति होनी चाहिए। सहमति से आशय ठहराव के पक्षकारों का समान विचार रखतेहुए सभी बातों के लिए आपस में सहमत होने से है। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक ही बात पर एक ही भाव से सहमत होते हैं तो इसे सहमति कहते हैं। वैध अनुबन्ध के लिए केवल पक्षकारों की सहमति ही पर्याप्त नहीं है, अपितु वह सहमति पूर्णतः स्वतन्त्र होनी चाहिए। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित तत्वों के आधार पर प्राप्त सहमति स्वतन्त्र नही मानी जाती है :
(i) उत्पीड़न
(ii) अनुचित प्रभाव
(iii) कपट
(iv) मिथ्या-वर्णन अथवा मिथ्या-कथन
(v) गलती।