2 बहादुर कहानी के आधार पर मध्यवर्गीय परिवार की कुछ प्रवृत्तियों का उल्ले
कीजिए।
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Explanation:
कहानी का सारांश
हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कथाकार अमरकान्त’ द्वारा लिखित कहानी ‘बहादुर’ वस्तुतः एक मध्यवर्गीय परिवार में नौकर के साथ
परिवारजनों द्वारा किए जाने वाले अत्यधिक कठोर एवं असभ्य व्यवहार पर आधारित कहानी है। अमरकान्त हिन्दी के उन कहानीकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी कहानियों में मध्य एवं निम्न वर्ग के प्रति सामाजिक जीवन की अमानवीय स्थितियों को एक यातनागार के रूप में प्रस्तुत किया है।
पात्र-परिचय
लेखक कहानी का वक्ता
निर्मला लेखक की पत्नी
साले साहब लेखक के साले साहब
दिलबहादुर एक नेपाली लड़का तथा लेखक के घर का नौकर, जिसका नाम दिलबहादुर से केवल बहादुर कर दिया जाता है।
किशोर लेखक का बड़ा लड़का
बहादुर को देख लेखक के मन में नौकर रखने की
आवश्यकता का अनुभव करना
एक दिन लेखक के साले साहब एक नेपाली लड़के को लेकर लेखक के घर आते हैं। उसकी उम्र बारह-तेरह वर्ष के लगभग थी, ठिगना चकइठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह। वह सफेद नेकर, आधी बाँह की सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने खड़ा था। उसे देखते ही लेखक को स्मरण हुआ कि उसके सभी भाई और रिश्तेदारों के यहाँ नौकर हैं। दोनों भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चारपाइयाँ तोड़ती रहती हैं, जबकि उसकी पत्नी निर्मला सुबह से शाम तक घर के कामों में व्यस्त रहती है। यह सोच लेखक का मन ईर्ष्या से जल उठा तथा निर्मला भी हर वक्त नौकर रखने की रट लगाए रहती थी। यही स्मृति बहादुर को देखकर लेखक
को नौकर रखने की आवश्यकता का अनुभव कराती है।
साले साहब द्वारा लेखक व उसके परिवार को बहादुर का परिचय देना
साले साहब लेखक व उसके परिवार को बहादुर का परिचय देते हुए कहते हैं कि यह एक नेपाली बालक है, जिसका गाँव नेपाल और बिहार की सीमा पर था तथा इसके पिता युद्ध में मारे जा चुके हैं। घर परिवार का भरण-पोषण इसकी माँ करती थी। वह चाहती थी कि लड़का घर के काम-काज में हाथ बटाए, परन्तु शरारती प्रवृत्ति के कारण इसने एक बार उसी भैंस को बहुत मारा जिसको उसकी माँ बहुत प्यार करती थी। इसलिए माँ ने इसे बहुत मारा, जिसकी वजह से इसका मन माँ से कट गया और एक दिन यह माँ के रखे रुपयों में से दो रुपए निकाल कर वहाँ से भाग आया।
लेखक तथा उसकी पत्नी निर्मला द्वारा ‘दिलबहादुर’ को नौकर ‘बहादुर’ बनने की प्रक्रिया समझाना
लेखक द्वारा लड़के का नाम पूछने पर वह अपना नाम ‘दिलबहादुर’ बताता है। लेखक उसे अपने घर में नौकर बनकर रहने के फायदे बताते हुए कहता है कि तुम अपनी सभी शरारतें छोड़कर ढंग से काम करना और इस घर को अपना ही घर समझना। हमारे घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज्जत से रखा जाता है, जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। यदि तुम हमारे घर में रह गए तो सभ्य बन जाओगे, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाओगे और तुम्हारी जिन्दगी सुधर जाएगी। निर्मला भी उसे नौकर बनने से पहले घर के कुछ व्यावहारिक उपदेश देती। हर्ड कहती है कि इस मोहल्ले में बहुत तुच्छ लोग रहते हैं न तो तुम्हें किसी के । घर जाना है और न ही किसी का कोई काम करना है। कोई बाजार से कुछ । लाने को कहे तो ‘अभी आता हूँ’ कहकर खिसक आना। तुम्हें घर के सभी सदस्यों से आदर व सम्मान से बोलना होगा तथा अपनी हिदायतें समाप्त करते हुए बड़ी ही उदारता के साथ वह उस लड़के के नाम में से ‘दिल’ हटा देती है। अब उसका नाम केवल ‘बहादुर’ ही बचता है।
बहादुर का परिश्रमी व हँसमुख स्वभाव
बहादुर अत्यन्त परिश्रमी लड़का है, जो अपनी मेहनत से पूरे घर को न केवल साफ-सुथरा रखता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। उसके आने से परिवार के सभी सदस्य बड़े ही आरामतलबी एवं कामचोर व आलसी बन जाते हैं। इतना काम करने के बावजूद वह हमेशा हँसता रहता है। हँसना और हँसाना मानो उसकी आदत बन गई थी। वह रात में सोते समय कोई-न-कोई गीत अवश्य गुनगुनाता है।