2 छन्दों में मात्राओं की गिनती किस प्रकार होती है?
3. मात्रिक छन्दों में किस स्वर की कितनी मात्राएँ गिनी जाएँ-इसका क्या नियम है?
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Answer:
जिन छंदों में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है उन्हें मात्रिक छंद कहा जाता है। जैसे - अहीर, तोमर, मानव; अरिल्ल, पद्धरि/ पद्धटिका, चौपाई; पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, रोला, दिक्पाल, रूपमाला, गीतिका, सरसी, सार, हरिगीतिका, तांटक, वीर या आल्हा
वाचिक भार अर्थात लय को ध्यान में रखते हुए मापनी के किसी भी गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 का प्रयोग किया जाना।
पिंगल के अनुसार झ, ह, र, भ, और ष इन पाँचों अक्षरों को छंद के आरंभ में रखना वर्जित है, इन पाँचों को दग्धराक्षर कहते हैं। दग्धराक्षरों की कुल संख्या 19 है परंतु उपर्युक्त पाँच विशेष हैं। वे 19 इस प्रकार हैं:- ट, ठ, ढ, ण, प, फ़, ब, भ, म, ङ्, ञ, त, थ, झ, र, ल, व, ष, ह।
परिहार- कई विशेष स्थितियों में अशुभ गणों अथवा दग्धराक्षरों का प्रयोग त्याज्य नहीं रहता। यदि मंगलसूचक अथवा देवतावाचक शब्द से किसी पद्य का आरम्भ हो तो दोष-परिहार हो जाता है। उदाहरण :
गणेश जी का ध्यान कर, अर्चन कर लो आज।
निष्कंटक सब मिलेगा, मूल साथ में ब्याज।।
उपर्युक्त दोहे के प्रारंभ में ज-गणात्मक शब्द है जिसे अशुभ माना गया है परंतु देव-वंदना के कारण उसका दोष-परिहार हो गया है।
द्विकल का अर्थ है 2 या 11 मात्राएं, त्रिकल का अर्थ है 21 या 12 या 111 मात्राएं, चौकल का अर्थ है 22 या 211 या 112 या 121 या 1111 मात्राएं
चौपाई आधारित छंद:-
16 मात्रा के चौपाई छंद में कुछ मात्राएँ घटा-बढ़ाकर अनेक छंद बनते है। ऐसे चौपाई आधारित छंदों का चौपाई छंद से आतंरिक सम्बन्ध यहाँ पर दिया जा रहा है। इससे इन छंदों को समझने और स्मरण रखने में बहुत सुविधा हो सकती है:-
चौपाई – 1 = 15 मात्रा का चौपई छंद, अंत 21
चौपाई + 6 = 22 मात्रा का रास छंद, अंत 112
चौपाई + 7 = 23 मात्रा का निश्चल छंद, अंत 21
चौपाई + 9 = 25 मात्रा का गगनांगना छंद, अंत 212
चौपाई + 10 = 26 मात्रा का शंकर छंद, अंत 21
चौपाई + 10 = 26 मात्रा का विष्णुपद छंद, अंत 2
चौपाई + 11 = 27 मात्रा का सरसी/कबीर छंद, अंत 21
चौपाई + 12 = 28 मात्रा का सार छंद, अंत 22
चौपाई + 14 = 30 मात्रा का ताटंक छंद, अंत 222
चौपाई + 14 = 30 मात्रा का कुकुभ छंद, अंत 22
चौपाई + 14 = 30 मात्रा का लावणी छंद, अंत स्वैच्छिक
चौपाई + 15 = 31 मात्रा का वीर/आल्हा छंद, अंत 21
दोहे से लेकर कवित्त और हाकलि से लेकर शार्दूल विक्रीडित तक सभी छंद मापनीमुक्त हैं और मधुमालती से लेकर विधाता तक सभी छंद मापनीयुक्त हैं।
कुण्डलिनी छंद को लिखने के कुछ विशेष नियम निम्न हैं:-
(क) इस छंद के प्रथम दो चरणों के मात्राभार (13,11) और नियम एक जैसे हैं तथा उससे भिन्न अंतिम दो चरणों के मात्राभार (11,13) और नियम एक जैसे हैं। अस्तु यह छंद विषम मात्रिक है।
(ख) दोहे के चतुर्थ चरण की अर्धरोला के प्रारंभ में पुनरावृत्ति सार्थक होनी चाहिए अर्थात दुहराया गया अंश दोनों चरणों में सार्थकता के साथ आना चाहिए।
(ग) चूँकि कुण्डलिनी के अंत में वाचिक भार 22 आता है, इसलिए यदि पुनरागमन रखना है तो इसका प्रारंभ भी वाचिक भार 22 या गागा से ही होना चाहिए अन्यथा पुनरागमन दुरूह या असंभव हो जायेगा l
(घ) कथ्य का मुख्य भाग अंतिम चरणों में केन्द्रित होना चाहिए, तभी छंद अपना पूरा प्रभाव छोड़ पाता है।
Explanation:
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