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जीवन के संपर्य संघर्षमय पर जो मिले
उये वीकार करना चाहिमाअपने विचार
लिश्विमा
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आज राष्ट्रकवि डा.शिवमंगल सिंह सुमनजी की जयंती है। सुमनजी, दिनकरजी की तरह ऐसे यशस्वी कवि थे जिनकी हुंकार से राष्ट्रअभिमान की धारा फूटती थी। संसद में अटलजी ने स्वयं की कविता से ज्यादा सुमनजी की कविताएँ उद्धृत की। हाल यह की सुमनजी की कई कविताएँ अब अटलजी के नाम से प्रचलित हैं। अटलजी सुमनजी को अपना साहित्यिक गुरू मानते हैं। वे सुमनजी ही थे जो अटलजी को कविसम्मेलनों तक खींच ले गए। इसीलिए सुमनजी व अटलजी की रचनाधर्मिता में अद्भुत साम्य मिलता है। सुमनजी दिनकर की भाँति राष्ट्रीय गौरव के उद्घोष थे। वैसे सुमनजी का जन्म 5 अगस्त 1915 को झगरपुर उन्नाव में हुआ था पर वे खुद को रिमाड़ी मानने व कहे जाने पर गौरवान्वित महसूस करते थे। अमरपाटन सतना का प्रताप गढी से उनका ताल्लुकात रहा है।उनका परिवार रीवा राजघराने से सीधे जुडा़ है।सन् 1990 में मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन ने उन्हें भवभूति अलंकरण से अलंकृत करने का निर्णय लिया। मेरे आग्रह पर बाबू जी(श्री मायाराम सुरजन) ने यह आयोजन रीवा में रखा। मेरा सौभाग्य है कि मैं इस कार्यक्रम का संयोजक रहा। मानस भवन में आयोजित वह समारोह आज भी जिसको याद होगा..वह निश्चित ही रोमांचित हो जाएगा उन क्षणों का स्मरण करके। सुमनजी उस कार्यक्रम में एक घंंटे से ज्यादा बोले, और भावविभोर होकर बोले। अपने बचपन,परिजन भाइयों को मंच से याद किया और रीवा की महत्ता बताई। कुछ कविताएं भी पढ़ी। शुरुआत अपनी परिचयात्मक पंक्तियाँ से की..
मैं शिप्रा सा सरल तरल बहता हूँ
मैं कालिदास की शेषकथा कहता हूँ
ये मौत हमारा क्या कर सकती है
मै महाकाल की नगरी, नगरी में रहता हूँ।
ये पंक्तियां सुमनजी के परिचय की ताउम्र सिग्नेचर ट्यून बनी रही। अवंतिका वासी सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें सुमनजी का सानिद्ध मिला और उनलोगों ने भी दैवतुल्य मान सम्मान दिया। मुझे याद है कि आयोजन की पूर्व संध्या सुमनजी का साक्षात्कार लेने मेजर साहब(कुंवर अर्जुन सिंह जी की ससुराल जहाँ वे रुके थे) के घर गया। शाम का वक्त था वे अपने सभी भाइयों के साथ जमे रमे थे। लौटने लगा तो जबरिया बैठा लिया यह कहते हुए कि देखो हम भाई मिलते हैं तो कैसे धमाल मचता है। उस शाही महफिल में मेजर साहब तो थे ही।
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